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१४. पताळ ( झपताल ) एक मात्रिक छंद जिसके प्रत्येक चरण में १४ मात्राएं होती हैं और अंत में गुरु होता है । समूचे ग्रन्थ में इसकी संख्या १८ है जो ग्रन्थ के प्रथम भाग में 1
१५. भूलणा - यह एक मात्रिक छंद है । यह कई प्रकार का होता है । ग्रन्थ में प्रयुक्त छंद के अनुसार इसके प्रत्येक चरण में ( १३+१०) =२३ मात्रायें होती हैं । ग्रन्थ में इसकी संख्या २४ है जो ग्रन्थ के प्रथम भाग में है ।
१६. तारक - यह एक वर्ण वृत्त है । रघुवरजस प्रकास के अनुसार इसके प्रत्येक पद में चार सगण और अंत में गुरु होता है । ग्रंथ में प्रयुक्त इस छंद में छंदोभंग दोष है । यथा
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वर बंधिय कुंभ घरण तिरण वारा
ग्रंथ में इसकी संख्या चार है जो ग्रन्थ के प्रथम भाग में है ।
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१७. त्रोटक - प्रत्येक पद में चार सगण वाला एक वर्णवृत्त है। समूचे ग्रन्थ में इसकी संख्या १४५ है ।
१८. दंग - इस छंद के लक्षण अस्पष्ट हैं । ग्रंथ में इसकी संख्या २५ है ।
१६. दवावेत - यह एक प्रकार का गद्य है जो दो प्रकार का होता हैएक शुद्ध-बंध अर्थात् पद-बंध जिसमें अनुप्रास मिलाया जाता है और दूसरा गद्य-बंध जिसमें अनुप्रास नहीं मिलाया जाता है ।
२०. दूहा - समूचे ग्रन्थ में इसकी संख्या ९४ है ।
२१. नाराच - एक वर्णवृत्त । इसका दूसरा नाम पंचचामर भी है । ग्रंथ में इसकी संख्या ५७ है ।
२२. निसिपालिका - यह एक वर्णवृत्त है । समूचे ग्रंथ में इसकी संख्या
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२३. नीसांरगी - राजस्थानी का एक मात्रिक छंद जिसका दूसरा नाम शुद्ध जांगड़ी गरवत नीसांणी भी है । ग्रन्थ में इसकी संख्या २६ है ।
२४. नीसांणी हंसगति - राजस्थानी का एक मात्रिक छंद जिसका दूसरा नाम रूपमाला है । ग्रंथ में इसकी संख्या १४ है ।
२५. पद्धरी - एक मात्रिक छंद । ग्रंथ में इसकी संख्या २०० है ।
२६. बे-अक्खरी ( द्वैक्षरी) - एक मात्रिक छंद जिसका प्रयोग कवि ने अन्य छंदों की अपेक्षा अधिक किया है । ग्रंथ में इसकी संख्या ६५४ है ।
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