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करने के लिए भेजा। वे अपने पिता को पूर्ण विश्वास दिला कर रवाना हुए। कवि ने यहाँ पर अभयसिंह के शौर्य का सुन्दर चित्रण किया है
रही भठे महाराज, आप पाणंद उपाए । बीड़ी मो बगसिज, जड़ मुदफर हूँ जाए। जुड़े त मारू जवन, भांति बळ काय भजाऊं।
करि झट खंड कराळ, चाक खंड खंड चढ़ाऊं। पुर नारनौळ साहिजा पुरां, दळि लूटूं दस देसनूं । अजमेर सोच दियूं उवर, दिल्ली सोच दिलेसनूं ।
सू.प्र. भाग २, पृ.६८ राजकुमार अभयसिंह अपनी सेना के साथ तूफान की भाँति आगे बढ़ते हैं और मुदफर खां यवन दल के साथ भाग जाता है ।
भजि गया बिण गज भार, हय थाट तीस हजार । मिट लाज छाडि गुमान, खड़ि गयो मुदफर खांन ।
सू.प्र. भाग २, पृ. १०२ महाराज कुमार ने बादशाही गांवों को लूट लिया और उनमें आग लगा दी। लोग भय से घबराने लगे
आवस धक अमास, उडि जाय गढ़ असि हास । लूटंत संपति लाख, सरदाण घण साख ।
सू.प्र. भाग २, पृ. १०३
प्रै सहर को ऊफांण, 'अभमाल' घेरे प्राण । चहुं तरफ थाट चलाय, लगाय वळ वळ लाय ॥ धुबि झाळ झळ हळ धोम, हणमंत लंक जिम होम । जाळीस सबळ पट जागि, आलीस आलिय प्रागि।
सू.प्र. भाग २, पृ. १०३ यहाँ पर कवि ने महाराज कुमार की युवावस्था में होने वाली अपरिपक्व बुद्धि की ओर संकेत किया है, क्योंकि लूट-खसोट करना, गांव जला डालना प्रादि वीरोचित कार्य नहीं हैं। इस प्रकार के कार्यों के कारण इनका नाम धोकळसिंह पड़ा। सबको भयभीत करके तथा बहुत धन-माल लेकर ये अपने पिता से आकर मिले
धन लूट कीधौ धारण, वधि नारनौळ विनाण। चंड नयररा परचंड, दो नगर में भुजदंड ।।
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