________________
[ १५ ] प्रवर रखत अरबां, किले वंचिया अधिकारां ।
जिक किया सही निजर, किला सहित कोठारां । जदि होय रूख पतझड़ जिही, सुभड़ा विणि दुख सालियो। प्रागरा दिसि सिर विलंद इम, हीण माण होय हालियो।।
• सू.प्र. भाग ३, पृ० २६४ इस प्रकार कवि ने महाराजा अभयसिंह का एक आदर्श राजा के रूप में चित्रण करने का सफल प्रयत्न किया है। प्रति नायक :
नायक की श्रेष्ठता प्रति नायक के बल का यथेष्ट वर्णन कर उस पर विजय प्रदर्शित करने से ही सिद्ध होती है। कवि ने अपने इस उत्तरदायित्व को ग्रंथ में यत्र तत्र पूर्ण रूप से निभाया है । सर बुलन्द :
अहमदाबाद का स्वतःसृष्ट नृपति सर बुलन्द, जिसको बादशाह . गुजरात का सूबेदार नियुक्त किया था, बहुत शक्तिशाली था। उसने विद्रोहियों से मिल कर गुजरात में बहुत अत्याचार किये, लूट-मार की जिससे कि वहाँ की प्रजा बहुत दुखी हो गई। बादशाह के दरबार में गुजरात के एक संदेशवाहक की आर्तनाद को कवि ने निम्न कवित्त में प्रकट किया है
ईरांनी अतपाक, दखिरण मिळ किया दुबाहां । मंडिया जठ गनीम, जठं सहनक पतिसाहां। माठ पहर रइयत्त, जहर पीधा समजावै।
लूट कहर करि लियै, सहर विवराळा गावै । धन लियै मारि नांखै धणी, साथ होण न दिय सती। असपती सोच वधियो अधिक, इसड़ी सुण प्रजाजती ॥
सू.प्र. भाग २, पृ. २४२ सर बुलन्द का दमन करने के लिए बादशाह के दरबार में पान का बीड़ा घुमाया जाना और वहाँ पर उपस्थित सभी राजा, महाराजा, सामन्त, नवाब, अमीरों आदि का सर बुलन्द के विरुद्ध बीड़ा उठाने की हिम्मत नहीं करने का वर्णन कर के ग्रंथकर्ता ने उसके अत्यन्त शक्तिशाली होने की ओर संकेत किया है। इसके लिए पुस्तक के द्वितीय भाग पृष्ठ २४५-२४६ तथा २४७ के कवित्त दृष्टव्य हैं। इसके अतिरिक्त ग्रंथ की निम्न पंक्तियाँ भी देखिये
बिहूं तांम बोलिया, साह अपखास सझावी । नरिंद खांन करि निजर, फिजर बीड़ा फिरवावी । फट निसा फजरांन, अंब - दीवारण वणाया। तखत बैठ सुरताण, पान हाजर पधराया।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org