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। ७ ] प्राइ दिली ईखिया, जोध चौतरा 'जसारां'। सुजि 'अवरंग' सजी (...) इता खटकै उण वारां। जूना भड़ां जियार, कहै इण भांत हकीकत । माति आदि जादम्म, मात अनि अठ खगां प्रत । आइठाण देखि कथ सुणि 'अजै' धिखै क्रोध इम चित धरी । असपति मारि मांडू अठ, एक कबरि असपत्तिरी॥ धख इम चख (...)धिखै, तांण मूछां खग तोले । भडा हूंत भूपाळ बहसि नाहर जिम बोले । खत्री खांडा धार, एह वायक अबखारण। जिको विरद उजवाळि, खूद पलटी खुरसारण । महि वैर वंस गोहरि मंडप, अवरंग' बहु कीधा इसा । ताबूत (रा) वैर भूलै तिक, कहै 'अजौ' राजा किसा।
सू. प्र. भाग २, पृ. ७७, ७८ अपने समय के सब से शक्तिशाली :
इनके दिल्ली पहुँचने पर सैयद बन्धुओं और बादशाह फर्रुखशियर ने इनका अलग-अलग स्वागत किया। वे जानते थे कि जिधर शक्तिशाली महाराजा झुक जायेंगे वही पक्ष मजबूत हो जायगा। किन्तु महाराजा मुगलों से कभी प्रसन्न न थे अतः उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से सैयद बन्धुओं का ही पक्ष लिया जो हिन्दुओं के पक्षपाती थे । फलस्वरूप बादशाह फर्रुखशियर मारा गया। अतः कवि ने यह प्रमाणित कर दिया कि महाराजा उस समय में सब से शक्तिशाली थे। धर्म रक्षक :
यवनों के समय में राजपूत राजाओं ने जी जान से हिन्दू धर्म की रक्षा की थी। कवि ने महाराजा का एक कुशल धर्म-रक्षक के रूप में चित्रण किया है । सैयद बन्धुत्रों का पक्ष उन्होंने इस शर्त पर कर लिया कि बादशाह फर्रुखशियर को हटाते ही हिन्दुओं पर से जजिया कर हट जाना चाहिये, हिन्दू तीर्थ-स्थानों पर से कर हट जाना चाहिये, गो-वध बन्द होना चाहिये तथा मन्दिरों में होने वाली नियमित पूजा में किसी प्रकार की बाधा नहीं पड़नी चाहिये।
हम रहै नौकर होय, दिल आप बांधव दोय । पलटां न वायक पेस, नहिं तजां हुकम नरेस । महाराज विच रहमाण, करि सौंस छिबी कुरांण । तदि धरै दिल परतीत, इम बोलियो 'अगजीत' । हिंदवाण तीरथ होय, कर जठ न लगै कोय । साळग्गरांम सिलाह, दै नहीं प्रासुर दाह । जिग होय दुज जप जाप, प्रासुर करे न उथाप। जिण मोह महि दुर जाय, ग्रहै त? मन गाय ।
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