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भीम सीसोदिया के पराक्रम से आमेर नरेश मिर्जा राजा जयसिंह और शाहजादे परवेज की संयुक्त सेना में भगदड़ मच गई । कवि कहता है
जाडां थंडां जियार, लोह पाडां भड़ लागा । जेरण वार 'जैसाह' भिड़े, हरवळ दळ भागा ॥
सू. प्र. भाग २., पृ. ६ महाराणा प्रताप का पौत्र भीम भयंकर मार-काट करता हुआ आगे बढ़ा, शाहजादे खुर्रम की विजय निश्चित थी। उसी समय भीम सीसोदिया ने दूर से युद्ध का कौतुक देखने वाले रण-केसरी महाराजा गजसिंह को ललकारा । महाराजा ने बड़े धैर्य और आत्म-विश्वास के साथ अपने तीन हजार राजपूतों से खुर्रम और भीम सीसोदिया की विशाल वाहिनी का मुकाबला किया। शाहजादे खुर्रम को विजय पराजय में बदल गई और भीम सीसोदिया वीर गति को प्राप्त हुआ। इस विषय में कवि की निम्न पंक्तियां देखिये
पाडियो भीम खागां पछटि, गयौ खुरम लसि कुरंग गति । गहतंत एम जीती 'गजण', पूरब धर जोधाण पति ।।
सू.प्र. भाग २., पृ.७ इस प्रकार कवि ने महाराजा गजसिंह को महान् धैर्यवान, सहनशील और आत्म-विश्वासी प्रकट किया है, क्योंकि भीम सीसोदिया के ललकारने पर ही उन्होंने अपनी छोटी सी सेना से उसको पराजित किया-इसके विपरीत भीम शाहजादे परवेज और पामेर नरेश मिर्जा जयसिंह की विशाल सेना से भी पराजित नहीं हुआ था।
इसी प्रकार महाराजा गजसिंह ने दक्षिण में अमर चम्पू को परास्त किया तथा दक्षिण के खिड़की गढ़, गोलकुण्डा, पाहोर, सितारा आदि को विजय कर के बादशाही राज्य में मिला कर अपने पराक्रम और शाही खानदान के प्रति स्वामिभक्त होने का परिचय दिया तथा बादशाह द्वारा 'दळथंभण' की उपाधि से सम्मानित हुए। महाराजा अजीतसिंह :__ ग्रन्थ में महाराजा अजीतसिंह का विशद वर्णन किया गया है, जो पुस्तक के सौ पृष्ठों से भी अधिक में पाठकों के समक्ष है। चूंकि बचपन में इनका पालन-पोषण वीर दुर्गादास राठौड़ की देख-रेख में गुप्त रूप से होता है, अतः इनकी बाल्य-क्रीड़ाओं का चित्रण नहीं किया गया है।
जब महाराजा कुछ योग्य हुए तो राजपूतों ने इनको अपना अग्रणो बनाया, अतः इससे इनका युद्ध विद्या में चतुर होने का प्रमाण मिलता है। उस समय
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