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जोधपुर पर औरंगजेब का अधिकार था। महाराजा अपने सरदारों के साथ इधर-उधर लूट-खसोट करते थे। मुगलों को हर प्रकार से तंग करते, उनकी रसद तक लूट लेते, गांवों से कर आदि वसूल करते । औरंगजेब के मरने पर इन्होंने जोधपुर पर अधिकार कर लिया, किन्तु इनका मुगलों से जूझना जारी रहा । इन्होंने अपने जीवन काल में सांभर, डीडवाना तथा कुछ दिनों के लिये अजमेर पर भी अधिकार कर लिया था। अतः कवि ने स्पष्ट कर दिया कि महाराजा आजीवन युद्ध करते रहे। मुगलों के प्रति तीव्र वैमनस्य :
इन पर मुगलों ने बहुत अत्याचार किये । महाराजा जसवन्तसिंह (प्रथम) का काबुल में देहावसान होने के लगभग तीन महीने बाद लाहौर में इनका जन्म हुमा । औरंगजेब ने जोधपुर राज्य को शाही सल्तनत में मिलाने तथा इनको मुसलमान बनाने के लिये दिल्ली बुला लिया किन्तु स्वामिभक्त वीर राठौड़ दुर्गादास की चतुराई से ये बचा लिये गये। इस समय इज्जत बचाने के लिये दिल्ली में दुर्गादास ने उनकी माताओं को तलवार के घाट उतरवा कर यमुना में बहा दिया । गुप्त रूप से बड़े होने के बाद कई लड़ाइयाँ लड़ कर उन्होंने अपना पैतृक राज्य मुगलों से पुनः प्राप्त किया। इन सब कारणों से वे मुगल सल्तनत को मटियामेट कर देना चाहते थे। सैयद बन्धुओं और बादशाह फर्रुखशियर में वैमनस्य हो जाने के कारण ये भी अपने सरदारों सहित दिल्ली पहुंचे। यहाँ पर कवि ने महाराजा की इस भावना का अच्छा चित्रण किया है। दिल्ली में प्रवेश करते समय इन्होंने अपनी शैशवावस्था में रक्षा करने वाले उन वीरों के समाधि-स्थान देखे जो इनकी रक्षार्थ मुगलों से लड़ते हुए वीर गति को प्राप्त हुए थे तथा इन्हें अपनी जन्मदात्री मां का भी स्मरण हो आया जिनका समाधि स्थान भी यहीं पर था। इनके हृदय में प्रतिशोध की भावना भड़क उठी और अपने मन में मुगलों का नाश करने की ठान ली। देखिये :
समै जेण पतिसाह, दुगम बुद्धि काळ दबायो। 'सैद' ग्रहण पतिसाह, आप भय चूक उठायौ। . खेध पड़े चित खांन, खोद उज्जीर हुवा खळ । सांभलि अलीहुसेन, दखिरण हूँ आयो सझै दळ । पतिसाह ग्रहण जोधाण पति, पेखै मोसर पावियो । दइवांण 'अजौ' दळ सझि दिली, आप मुरादौ प्रावियो ।।
सू. प्र. भाग २, पृ.७६. ७७
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