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[ २ ] का गुप्त रूप से पालन-पोषण, रक्षा तथा पुन: जोधपुर राज्य पर अधिकार करने का रोचक वर्णन है। ____ ग्रंथ के उत्तरार्द्ध में महाराजा अभयसिंह के जीवन की दो प्रमुख युद्ध-घटनाओं का वर्णन है, जिसमें प्रथम नागौर के युद्ध का संक्षिप्त तथा दूसरा अहमदाबाद विजय का विस्तृत हाल है। इस युद्ध के वर्णन के साथ ही ग्रंथ की समाप्ति हो जाती है।
चरित्र-चित्रण ... कविराजा करणीदान जोधपुर-नरेश महाराजा अभयसिंह के आश्रित थे। उसका प्रस्तुत 'सूरजप्रकास' काव्य महाराजा की अहमदाबाद-विजय का युद्ध-वर्णन करने के ध्येय से लिखा गया था किन्तु कवि ने अपने इतिहास-ज्ञान का प्रदर्शन करने के लिये लगभग आधे ग्रंथ में महाराजा के पूर्वजों का वर्णन किया है । सर्यवंश में होने वाले प्रथम राजा इक्ष्वाकु से कन्नोज-नरेश जयचन्द राठौड़ तक की वंशावली और रामायण तथा राजा पुंज के तेरह पुत्रों का वर्णन इतना संक्षिप्त है कि किसी भी पात्र का चरित्र पूर्ण रूप से मुखरित नहीं हुआ है।
जयचन्द राठौड़ से महाराजा अभयसिंह के पितामह महाराजा जसवंतसिंह (प्रथम) तक का इतिवृत्त ऐतिहासिक दृष्टिकोण से लिखा गया है जिसमें कई पात्रों का संक्षिप्त तथा कई पात्रों का विस्तार से चित्रण किया है, किन्तु हम उन पात्रों के सर्वांगीण चरित्र-चित्रण पर विचार नहीं कर सकते । उसमें प्रायः उनके युद्ध-चातुर्य, दान, वीरता आदि पर ही प्रकाश डाला गया है; यथा, महाराजा अजीतसिंह तथा कवि के आश्रयदाता महाराजा अभयसिंह के युद्ध-कौशल, राजनीति, दान, वीरता प्रादि का विशिष्ट चित्रण है। .: प्रतिपक्षियों का चरित्र-चित्रण करते समय कवि ने शत्रुओं की शक्ति, राजनीति, युद्ध-चातुर्य तथा अवसर पड़ने पर प्रात्म-समर्पण अथवा रण से भाग जाने का सजीव वर्णन किया है । कुछ पात्रों के चरित्र नीचे दिये जाते हैं। महाराजा सूरसिंह :
कवि ने सूरसिंह का चरित्र एक कुशल और वीर राजा के रूप में चित्रित किया है । बादशाह अकबर के दरबार में जब गुजरात के शासक मुजफ्फर के ज्येष्ठ पुत्र बहादुर (इसने गुजरात में लूट-मार शुरू कर दी थी) का दमन करने के लिये बीड़ा घुमाया जाता है तब किसी भी राजा की हिम्मत उस बीड़े को ग्रहण करने की नहीं होती है, केवल महाराजा हो जोशीले शब्दों में सम्राट अकबर को धैर्य देते हुए उस बीड़े को उठा लेते हैं।
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