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सूक्तमुक्तावलीधर्मवर्ग
पण महारो पिता मर्ण पाम्यो नहीं अने मने राज्यगादी मली नहीं, माटे कोई पण उपाये तेमने कालधर्म पमा. श्रावो विचार करी तेणे पोताना पिताने मारवानी पेरवी करवा मांमी. श्रा वातनी प्रधानने खबर पमवाथी तेणे ते राजाने जणावीने कह्यु के- राज्यनो मालीक ए थवानो ने बतां तेने हाल माठी बुषि उपजी डे तेथी विनाश थवानो संजव बे. माटे युक्तिपूर्वक बुझिबले करी कोई एवो उपाय योजो के तमे तथा तमारो कुमार बन्ने जीवता रहो अने राज्यसुख जेम नोगवो बो तेम नोगवो. प्रधाननु कहेवू सांजली राजाये वडा पुत्रने तेमाव्यो अने कह्यु के- अरे नाई ! हुं तने एक वात कडं ते सांजल. हवे महारी वृद्धावस्था थई डे अने राज काज पण बरोबर करी शकातुं नथी, तेमज ते करवानी मारी ईला पण नथी, तेथी महारे तने राज्याभिषेक करी राज्यनो खतंत्र मालीक करवो बे; परंतु आपणा कुलमां एवी रीत के-आपणी राज्यसनामां जे एकसो आठ थांजला डे अने ते दरेक थांचलाने एकसो आउ आउ हांसो ले ते प्रत्येक हांस दीठ आपणे जुवटु रमी पासा खेलवा. एक साथे लागट एकसो आठ वार पाधरो दाव पडे तो एक थांजलो जीत्यो गणाय, परंतु वच्चमां कोई दाव अवलो पमे तो ते जीतेला दाव रद गणाय अने फरीथी एकसो श्राप लागट जीतवा पडे, ए प्रमाणे एकसो आठ थांजला जीततां तुरत तने राज्याभिषेक करी हुँ निवर्त था एवी महारी श्छा . आ प्रमाणे जीतीने राज्य मेलवी शकाय नहीं. कदापि कोई देवतानी साहाय्य वझे दाव पाधरा पाडी एकसो ने आठे थांबला जीतीने राज्य मेलवे, परंतु मनुष्यनव धर्म विना एले गुमावे ते फरीने पामवो महा दुर्लन बे. माटे जव्य जीवे धर्मने विषे उद्यम करवो पण लगार मात्र प्रमाद न करवो.
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