Book Title: Suktavali yane Suktmuktavali
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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३१४ सूक्तमुक्तावली मोदवर्ग श्राव्यो. तेणे कामनी अर्ध माली कापी तेवारे नूख्यो थयो. एटले रसोई करवा मांमी. तेनो धूआडो मृगले दीगे. मृगे मुनी आगल श्रावी पुंबडी हलावी. साधु पात्र पडीलेहि मृगनी केडे केडे गया. ते ज्यां सुत्रधार अध कापी डाली आगल रसोई करतो हतो त्यां आव्या. सुत्रधार उठी साधुना सामो आव्यो अने पगे लागी बोल्यो जे - खामी पधारो, हुं पावन थयो, कृतपुण्य थयो. मृगलो पोताना मनमां चिंतववा लाग्यो जे, हुं मानव अवतार पाम्यो होत तो लोहो लेत. धन्य माणसना अवतारने ! में शुं कयु जे तिर्यंचपणुं पाम्यो बुं. एवी नावनाए वासीत थयो . एवे समये उदंड वायरो वायो. तेथी अधकापेली डाल त्रणे (मुनी, सूत्रधार अने मृगला) ने माथे पडी. त्रणे ते नीचे चंपाणा. ते मरीने पांचमे देवलोके देवता थया.
॥अथ छादश नावना विषे ॥ ॥ तत्र ॥ प्रथम अनित्य नावना विषे ॥ मालिनी बंद ॥ पल पल तनु जीवी वीज जात्कार जेवी, सुजन तरुण मैत्री स्वप्न जेवी गणेवी॥ अहव मगनताए मूढता काई माचे, अथिर अरथ जाणी एणशुं कोण राचे ॥१०॥
जावार्थः- संसार खरुप केQ ? पले पले बाउ घटे बे; श्राउखु केवु ? जाणे वीजलीनो जबकार होयनी शुं ! अर्थात् जेम वीजली अल्प समय मात्र देखवामां आवे तेवू पाउने तेम वजन सगां संबंधीनो मित्रपणो पण तेवो स्वन्न समान जाणवो; पण चेतननी गुढताए मग्नपणे अथीरने श्रीर करी जाणे, एवा कारमा उपर मूर्ख होय ते राचे पण पंडित होय ते न राचे.
बीजी प्रतमा १ " पल पल " ने बदले “ धण कण; २ "सुजन" ने बदले "स्वजन" ३ "अहव मगनताए" ने बदले "अहमत ममताएं" एवा शब्दो के.
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