Book Title: Suktavali yane Suktmuktavali
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 338
________________ ३२२ सूक्तमुक्तावली मोदवर्ग जाय, अने जे जंच होय ते मध्यमजाति थाय; जेम हीन जातिमा उत्पन्न श्रयेला मेतार्यमुनीवर मोदे गया, तेम मुंगु आचार्य नगरयदनो अवतार पाम्या, १५ ( मेतार्य मुनीनो प्रबंध प्रथम श्रावी गयो ने त्यांथी जाणी लेवो) ॥अर्थ मंगु आचार्यनो प्रबंध ॥ मंगु नामे आचार्य पांचसे शिष्यना गुरु, ज्ञानना दरीया, शुफ मुनीमार्गना पालणहार, पंच सुमति सुमता, त्रण गुप्तिए गुप्ता, एवा परिवारे परवर्या थका एकदा मथुरा नगरीये श्राव्या. त्यांनो घणो संघ तेमने वांदवा आव्यो. सूरी महाराजे देशना दीधी. ते सकल संघने मन जावी. संघे याग्रह करी गुरुने नगरमां आणी शुरू स्थानमा राख्या. संघे सेवा नक्ति युक्ति सारी करी. सरस आहार वोहोराववा लाग्या. तेथी रस लोलपीपणुं थयुं. एटले रसगारव थयो जे अमारा जेवो सरस थाहार कोईने मलतो नथी. वली पाथरणां, उढणां, करमर, चंदुआ, पाट, पाटलादिनो शकिगारव थयो. अने इंजिजनित सुखनु वेदवू थयुं. ते शाता गारव कहीये. ए त्रणे गारवमां वर्त्ततां विहार पण न करे. त्यां ने त्यां तेज नगरमा रह्या. एम करतां आयु पूर्ण थतां मंगु आचार्य चवीने नगरने खाले यददेवता थया, यदे झाने जोयु. तेणे पूर्वनव जाएयो, जे में संयमयोग विराध्यो तेथी देव पुर्गतिपणुं पाम्यो. तेणे वीचार्यु जे, रखेने ! ते चेलाजैनी गति बिगडे. एवं 'जाणीने तेणे साधुने स्थंमील नूमी जतां देखी पोतानी जीन बाहार काढी साधुने देखाडवा मामी साधुए पुग्युं जे, हे यददेवता! एम केम करो हो ? यदा बोल्यो जे, हुं तमारो मंगू नामे श्राचार्य हतो ते रसेजियनो लालची थयो हतो तेथी देवताउनी गतिमांहे हीन देवगतिये उपज्यो. नगरने खाले अपवित्रमा उपन्यो. माटे तमने हुँ कहुं जे, For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org

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