Book Title: Suktavali yane Suktmuktavali
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 350
________________ ३३४ सूक्तमुक्तावली मोदवर्ग ॥ अथ सप्तमी आश्रव जावना विषे ॥ मालिनी बंद ॥ इद अविरति मिथ्या योगे पापादि साधे, इण नण नव जीवा आश्रवे कर्म बांधे ॥करम जनन जे ते - श्रवा कर्म रुंधे,समर समय आत्मा संवरी सो प्रबुद्धे शश नावार्थः- अविरती १५, कषाय १६, मिथ्यात्व ५, अने योग १५, ए सर्व श्राश्रव छार कहीये, ते थावे जीव कर्म बांधे; अने एज श्रात्मा बलीयो थाय तो श्राश्रवने रोके, आत्मा समतावंत थाय, तेवारे ए हित थात्मा संवरी कहीये, ए चेतन बोधी बीज पामे. २२ ॥इंडवजा बंद ॥ जे कुंडरीके व्रत गमि दीg, लाईतणुं ते वलि राज्य लीधुं ॥ ते उःख पाम्या नरके घणेरा, ते हेतु ए आ. श्रव दोष केरा ॥ २३ ॥ . नावार्थः- कुंमरीके व्रत बमीने नानु राज्य लीधुं; ते नर्कने विषे घणां पुःख पाम्या, ए आश्रव दोषनो हेतु जाणवो, अर्थात् श्राश्रव दोषे करी कुंडरीक नर्कना फुःख पाम्या. २३ ॥ ॥ श्राश्रव दोषे करी नर्कनां पुःख पामनार . कुंमरीकनो प्रबंध ॥ - महाविदेह देत्रने विषे पुंडरीगीणी नयरीए कुंडरीक अने पुंभरीक नामे बे नाई राज्य जोगवता हता. एवा अवसरने विषे त्यां ज्ञानी गुरु श्राव्या. तेमनी देशना सांजली कुंडरीक प्रतिबोध पाम्यो. घेर आवी कुंमरीके पोताना लाई पुंडरीकने पोतानो - बीजी प्रतमां १ " योग पापादि " ने बदले " जोगकोपधि” अने २ "करम जनन जे ते आश्रवा कर्म रुंधे," ने बदले “करम जनक जेने आश्रवा जे न रुंधे," एवा शब्दो के. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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