Book Title: Suktavali yane Suktmuktavali
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 332
________________ ३१६ सूक्तमुक्तावली मोक्षवर्ग बे; एम हृदयमां विचारीने जे कारमी देहनी माया के तेने तजवी, कोनी परे ? तो के-जरत चक्रवर्त्तिए जेम कायानी माया मुकीने योगथी मन लगाव्युं; तेनी परे कायानी माया तजवी. ११ ॥ अथ अनित्य जावना कायानी माया तजनार जरत चक्रवर्त्तिनो प्रबंध ॥ जरत चक्रवर्त्तिने राज्य जोगवतां चक्ररत्न उपन्युं अने - दिश्वरजीने केवलज्ञान उपन्युं, ए वे बाबतना वधामणीया जरतराय पासे एकी वखते याव्या. एके चक्ररत्तनी ने बीजे केवल ज्ञाननी वधामणी थापी चक्रिए वन्नेने घणुं द्रव्य यापी सन्मान्या पठी विचाखुं जे चक्र तो श्रालोके समर्थ छे, परंतु तातजी रूपनदेवजी तो लोके ने परलोके एम उजय लोके समर्थ बे; माटे प्रथम तातजीनी जक्ति करवी. एम. निर्धार करी मरुदेवा माताने हाथीए बेसारी प्रजुने वांदवा गया. मरुदेवाजीनी खेरुपदेवजी ना विरहे वर्ष दीवस सुधी रोइ रोईने पमल वयां हतां. एमणे देवकुंडुनिना जय जयारव शब्द सांजली पुब्धुं जे, हे जरत ! वो मधुर वाजानो शब्द शानो वागे वे ? जरत बोल्या जे - हे माताजी ! तमे मने उलंजो देतां हतां के तुं राज्यनो लोलपी थयो थको महारा रुपजनी खबर मंगावतो नयी, ते तमारा पुत्रनी या संपदा जुर्ज एवं सांजलतां हर्षोत्कर्षे मरुदेवा मातानां परुल वेराणां ( फाटी गयां ). पी माता प्रगटपणे रत्नमय, सुवर्णमय अने रुपामय, एवा त्रण गढ तेजे फलामल देखीने विस्मय थतां विचार्यु जे, कोना बेटा ? सर्व कारमुं बे. कोई कोईनुं नथी. हुं रोई रोईने अंधमय aई. पण ए पुत्रे संदेशो मात्र कहेवराव्यो नही, तो धिःकार वे संसारने अने ए एक पखा रागने. एवी जावना जावतां हाथी उपर बेठेलां मरुदेवी माता अंतगड केवली यई मुक्ति पद Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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