Book Title: Suktavali yane Suktmuktavali
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 334
________________ ३१८ सूक्तमुक्तावली मोदवर्ग द्रोण प्रमूख बन्नु क्रोम गाम, चोरासी लाख हाथी, चोरासी लाख घोमा, चोरासी लाख रथ, बन्नु कोड पायदल, साठ हजार पंडित, दश कोडी धजाधारी, पांच लाख दीवीधरा, एक लाख बाणु हजार स्त्री परिवार, बत्रीश हजार देश, वत्रीश हजार मुगटवऊ राजा जेने सेवेबे एव समृद्धि मेलवी संपदा लेई जरत चक्रवर्त्ति अ योध्याए व्या. त्यां बार वर्ष सुधी उठत्र कर्यो. एवी साम्राज्य लक्ष्मी घणा काल सुधी जोगवी. एकदा यारीमा जुवनमां बेठां rai पोतानुं अंग जुए बे. त्यां श्रांगुली अमवी देखी सकल शणगार उतार्या. ते पर पुली माया देखी नित्य जावना जावतां जरत चक्रवर्त्तिने केवल ज्ञान उपन्युं शासन देवताए मुहुपति ( साधु वेष ) आप्यां. राज्य बांडीने दश हजार राजा साथे नीकल्या. भूमीतल पावन करता जव्य जीवोने प्र तिबोधी था पूर्ण थये मुक्ति वधु वर्या ध्वनित्य जावनाये जरत चक्रवर्त्तिए पोतानुं कार्य साध्युं. तेम बीजाए पण ए अनित्य जावना जावी, के जेश्री श्रात्महित अवश्य थाय बे ॥ ११ ॥ ॥ अथ द्वितीय शरण जावना विषे ॥ " परम पुरुष जेवा संदर्या जे कृतांते, व्यवर शरण केनुं लीजिये ते ते || प्रिय सुहृद कुटंबा पास बेठा जिकोई, मरण समय राखे जीवने ते न कोई ॥ १२ ॥ जावार्थ:- परम पुरुष जे उत्तम तीर्थंकर चक्रवर्त्ति जेवाने पण कृतांते संदर्या, तो अंत समये बीजुं एवं कोण बे के तेनुं शरण करीये; अर्थात् शरण करवा लायक तेनुं बीजुं कोई नथी; वली यंत काले माता, पिता, जाई, मित्र, सग संबंधी जे पासे ari होय ते एम एम बेठां रहे छाने ते संसारी जीव हींगतो याय, अर्थात् जीव चाल्यो जाय, एमां कोईनुं कांई Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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