Book Title: Suktavali yane Suktmuktavali
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 335
________________ नाषान्तर सहित. ३२ए चाले नही. माटे अंतकाले धर्म विना बीजं कोई शरण नही. १५ सुर गण नर कोडी जे करे जास सेवा, मरण नय न बूटा ते, इंसादि देवा ॥ जगत जन हरंतो एम जाणी अनाथी, टत ग्रदिय विटो जेद संसारमाथी॥१३॥ नावार्थः- देवतानां वृंद अने मानवीनां वृंद (कोडो माणस) पण एवानी (जेनी) सेवा करे, (तेवा)इंसादिक देवता जेवा पण मरण नयथी बूट्या नही; एवो जगतजीवने हणतो फरतो मरणजय जाणी अनाथी मुनि संसार मुकी पंच महाव्रत ग्रहण करीने संसार समुज्थी तर्याः ॥ १३ ॥ ॥ अथ अशरण जावना- धर्मनुं शरण करनार अनाथी मुनीनो प्रबंध ॥ कोसंबी नगरीना राजानो पुत्र जर योवनमां रोगे पीमातो हतो. राजाए घणा वैद्य तेडाव्या. उसड उपाय घणा कर्या, पण कोस्थी करार न थयो. तेनी माता घणा विलाप करे, तेनी स्त्री पण जरिने मुखे फुःखणी थई फरे, तेनी बहेन पासे बेठी थकी कहे के, वीरा तहारी वेदना मने श्रावो. नयणे आंसु चाले, पण कोनुं जोर न चाले. अर्थात् माता, पिता, बहेन, स्त्री श्रादिक सर्वे सगां संबंधीए बनता सघला उपाय कर्या पण कोश प्रकारे तेनो रोग मट्यो नही. सर्व वैये हाथ खंखेर्या. एकदा ते राजपुत्रे विचार्यु जे धर्म विना कोई शरण कामर्नु नथी. माटे धर्मनुं शरण करुं. एवं चिंतवी रात्रे सुतो. एटले तेने शरीरे करार थयो. प्रनाते मंगलीकनां वाजां वाग्यां परिवार सर्वे खुशी बीजी प्रतमां १ " जास” ने बदले “ तास” २ " तेह इंसादि" ने बदले “जे सुरेंजादि " ३ " विबूटो जेह संसारमांश्री" ने बदले “तरंतो जेह संसार साथी” एवा शब्दो के. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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