Book Title: Suktavali yane Suktmuktavali
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 329
________________ भाषान्तर सहित. ३१३ तुंग शैल बलदेव सुहायो, जेण सिंह मृग बोध बतायो॥ तेम संयम लदीय अरायो, जेण पंचम सुरालय पायो । ए॥ नावार्थः- तुंग नामे पर्वत उपर बलदेव साधु रह्या, तेमणे सिंह अने मृग विगेरेने प्रतिबोधी समकीत पमाड्या; तेए संयम पामीने आराध्यो, जेश्री करीने पांचमा देवलोकना सुखप्रत्ये पाम्या. ॥ ए॥ ॥ चारित्रनी लब्धिए करी सिंहादिक पशुने ___ बोध पमामनार बलदेवमुनीनो प्रबंध ॥ कृष्णे काल कर्या पली बलदेवजीए चारित्र लीधुं. ते अतिरुपाला हता. एक वखत मध्याने नगरमां गोचरीए आवतां कुआने कांठे उन्नेली स्त्रीए तेमने दीग. तेमना रुप पर मोही थकी ते स्त्रीए नान जूलीने घडाने बदले त्यां गेकरो बेठेलो इतो तेना गलामा दोरमानो गालो घाली तेने कुशामां फांसवा मांड्यो. साधु ते जोई बोल्या जे, ए शुं करो डो ? तेवारे स्त्रीने जान श्राव्यु, अने बोकराना कंठमांथी गालो काढी घमो फांस्यो. बलदेवजीए आ बनाव पोताने लीधे बन्यो एम जाणी पोताना मन साथे निश्चय कर्यो जे, “ आज पठी नगरमां न आवq. वनमां श्राहार मले तो लेवो. नहिंतर तपनी वृद्धि थशे." त्यारथी ते वननेविषे सर्वदा रहेवा लाग्या. त्यां तेमने तपशक्ते लब्धि उपनी. तेणे करी तेमनी देशना सांजलतां मृगलां, ससला, सूअर, वाघ, सिंह विगेरे पशुओए मांसनां पञ्चरकाण कर्या. ते पश्वा दिकने देशना देता हता. एम करतां एक दीवस काष्ट छेदक बीजी प्रतमा 'अरायो' ने काणे 'आराधे' अने * “ पायो ' ने ठेकाणे ' साध्यो' शब्द : Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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