Book Title: Suktavali yane Suktmuktavali
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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सूक्तमुक्तावली कामवर्ग दायने वाली जस्म कर्या. ते सर्वेनो राखनो ढगलो थयो. पड़ी ते राजपुत्रोनी साथे श्रावेला बत्रीस हजार राजा श्रने प्रधाने रात्रिने विषे विचार्यु जे,अहीं तो ा कारण (आवो योग) बन्युं, तो हवे आपणे महाराजा ( सगर चक्रवर्ति ) पासे जईने शो जवाब देश्शुं ? ते एम कहेशे जे अमारा सघला पुत्रने मर्ण पमाड्या अने तमे केम जीवता आव्या ? एवो सोच करता करता ते सर्वे सेना सहित त्यांश्री नीकलीने नगर थकी अलगा श्रावीने उतर्या, ए वेलाये सौधर्म इंश ब्राह्मणने रुपे ए नगरना चौटामा एक बालकनुं रुप वीकुर्विने तेने पोताना खंधोले नाखी रुदन करतो अने मुखथी 'श्रा महारा एकनाएक ( फक्त एकज ने ते ) पुत्रने सर्प मसवाथी ते मर्ण पाम्यो ' एवं कहेतो कहेतो श्राव्यो. लोको तेने क्या ? कई वेलाये अने केवी रीते करड्यो ? एम पुबवा लाग्या. तेड़ने कहे जे अरे नाश्यो ! महारे तो ए म्होटुं पुःख बे, तमे वारंवार शुं भने पुठो बो ? तुम थकी कांई जगरे एवं ले ? लोक कहे जे, तुं रो मां, चक्रवर्ति पासे जा. केम जे तेमनी सत्नामध्ये साठ हजार वैद्य . गमे ते उपाय करशे. पली ते (ब्राह्मण रुपे बनेलो इंज) दरबारनी पासे आवी रोवा लाग्यो. चक्रवर्तिए तेने तेमावीने पुरवाथी तेणे सुखनी वात कही. चक्रवर्तिये वैद्यने बालाव्या, अने का जे, तमे महारो मुसारो खाउँ बो, माटे ए ब्राह्मणना बालकने जीवाडो. वैद्यो हवे शो उपाय करवो? एवा विचारमा पड। गया. केमके मर्ण पामेलो बालक जीवामी शकायज केम ? पठी तर्क बुद्धि वापरी तेए कह्यु के, महाराज ! जेना घरनो कोई न मुढ होय तेना चूलानी राख आवे तो हमणां जीवे. चक्रवर्तिये तेवी राख सारु सघले तपास करावी पण ए जोग तो न मल्यो. एटले त्यांथी उठी तेणे पोतानी मा पासे आवीने राख
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