Book Title: Suktavali yane Suktmuktavali
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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२००
सूक्तमुक्तावलीकामवर्ग
वस्त्र जीजाणा. ते सुकववा सारु साधवी गुफामांहे गया. त्यां वस्त्र उतारी सुकव्यां. तेवारे वस्त्र रहित राजिमतिनां अंगोपांग रूप अवयव देखीने रहनेमी काउसग्ग थकी कामे विह्वल थया. जे ध्यान हतुं ते तो विसरी गयु. अशुजध्यानने विषे तेमनो आत्मा मग्न थयो. ते विषयरुप मदिरानी कमां चढ्यो थको मुखथकी काम सेववानी प्रार्थना करवा लाग्यो. वली तेणे कडं के, अरे राजिमती ! था, तहारं अद्भुत रुप बतां तुं तहारो नकामो जन्म अफल करे . अकस्मात् आवां वचन सांजली राजिमतीये पोतानां अंगोपांग गोपव्यां. पड़ी रथनेमीने खानादिकनां केटलांक दृष्टांत देई बेवटे का के, अहो अंगधकुलना जात थकी शुं निपट थश्ने बोलतां लाजतो पण नथी? अर्थात् अंगधकुल जातिनो सर्प वम्युं विष जीव जतां सुधी फरी चूसतो नथी तेम उतां तुं उत्तम कुलमा उत्पन्न थयेलो संसार रुपी विष अर्थात् विषयरुपी वमेला विषनी वांछना करतां तुं केम लाजतो एटले शरमातो नथी. ? सतीना मुखथी एवां वचन सांजली रथनेमी मनने विषे विचारवा लाग्यो जे- श्रावी यौवन मदमाती स्त्रीए पण पोतानो परिणाम लगार मात्र न मगाव्यो; तो मुजने धिःकार हो ? जे नाश्नी नार्या, तेनो में अनिलाष कीधो. एम प्रतिबोध पामी श्रीनेमीश्वर नगवान पासे जई प्रायश्चित्त बेई फरी चारित्र ग्रहण करीने ते बाराधन करी सद्गति पाम्या. एवा वीर पुरुषने पण ए कामदेवे चलाव्या तो बीजानो शो श्राशरो. ? माटे तेनाथी दूर रहे. तेना पासमां न पम, ए मनुष्य नवनुं सार्थक , अने तेवाज नर अक्षय सुखने सुखरुप मेलवे . ६
वीर नगवानना साधु चेलणा राणीने जोई चलित थया हता तेनो संबंध ग्रंथांतरे जाणी लेवो.
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