Book Title: Siri Usahanahchariyam
Author(s): Vijaykastursuri, Chandrodayvijay Gani
Publisher: Nemi Vigyan Kastursuri Gyanmandir
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________________ दिसिजत्ताए पहासतित्थाहिगारो। 119 मज्झ दोसं सहसु, 'जं अग्णाणया दोसं निन्हवेइ', परिस्संतेण आसमो इव, तिसाउरेण पुण्णसरोवरं व हे सामि ! सामिरहिएण मए संपइ तुम सामी पत्तो असि, हे भूनाह ! अज्ज पभिई तुमए ठविओ अहं इह उदहिणो गिरिव्व भवंतस्स मज्जायाधरो चिटिसामित्ति वोत्तूण भत्तिभरनिभरो इमो भरहनरिंदस्स अग्गो 'नासोकयमिव तंवाणं समप्पेइ, तह य भाणुपहाहिं गुंफियमिव पहा- पहासियदिसामुहं रयणमइअकडीमुत्तं सो भरहरायस्स देइ तह य भरहनदिंदस्स पुरओ चिरसंचियनियजसरासिमिव उज्जलमुत्तारासिंदुक्केइ, तह महीवइणो निम्मलुज्जयजुइं रयणागरस्स सव्वस्समिव रयणुकरं च उवदेइ / राया तं सव्वं गिण्हेइ, वरदाममइं च अणुगिहिऊण तं नियं कित्तिकारगं विव तत्थच्चिय ठवेइ, तो वरदामपई सपसायं आभासिऊण विसज्जित्ता य विजयवंतो पुढवीनाहो नियं सिविरं समागच्छेइ, रहाओ अवरोहिऊण सिणाणं च किच्चा सो रायमयंको अट्ठमभत्तस्स अंते परिजणेहि समं पारणं कुणेइ, तो सो वरदामपइस्स अट्ठाहियामहूसवं विहेइ, 'महंता हि लोगंमि महत्तणदाणटं अप्परं जणं संमाणिति'।. तो परक्कमेण अण्णो इंदुव्व चक्कवट्टी चक्काणुसारी पच्छिमदिसाए पहासाभिमुहं चलेइ, 'नीरंधेहि सइण्णरेणूहि सग्ग-पुढवीओ पूरितो कइपयपयाणेहिं सो पच्छिमसमुदं पावेइ, पूगी-तंबूली-नालीएरीवणाउलंमि उद हिणो पच्छिमतडंमि खधावारं विणिहेइ, तत्थ राया पहासनाहं उदिसिय अहमभत्तं विहेइ, पुव्वं व पोसहागारंमि पोसहं गिण्हेइ, पोसहवयपुणमि मेइणीवई रह समारुहिऊण अवरो वरुणदेवुव्व जलनिहिं पविसेइ, चक्कनाहिपमाण जल अइक्कमिऊण संदणं ठविऊण धणुहं जीआरूढं बिहेइ, जयसिरिकीलावीणासरिसधणुहस्स तंतिमिव सिंजिणि हत्थेण उच्चएहिं वाएइ, नीरनिहिणो वेत्तदंडं वबाणपत्ताओ सरं कड्ढेइ, आसणे अतिहिमिव तं नरिंदो वाणासणंमि निवेसेइ तओ नरवई आइच्चबिंबाओ 'आगिटुं एगं किरणमिव त सिलीमुहं पहासाहिमुहं खिवेइ, किरणेहिं गयण पयासिंतो स सरो बाउच वेगेण समुदस्स दुवालसजोयणं उलंधिऊण पहासेसस्स सहाए पडेइ / सरं पेक्खिऊण सोवि कुद्धो, तत्थ य अक्खराइं देक्खिऊण पयडीकय-रसंतरो नडुव्व सज्जो सो उनसमेइ, तं सायगं अण्णंपि उवाहारं च सय घेत्तूण सो पहासवई भरहनरिंद उवगच्छेइ, नमिऊण य एवं विण्णवेइ -अज्ज देव ! तुमए सामिणा भासिओ ह पहासो अम्हि, 'रविणो १-न्यासीकृतमिव / 2 ढौकते / 3 नीरन्धेः-निश्छिद्रैः / 4 शिलिनीम्-धनुर्जीवाम् / 5 बाणयात्रात्-शरधेः। 6 आकृष्टम् / 7 शिलीमुखम्बाणम् /

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