Book Title: Siri Usahanahchariyam
Author(s): Vijaykastursuri, Chandrodayvijay Gani
Publisher: Nemi Vigyan Kastursuri Gyanmandir

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Page 204
________________ 180 सिरिउसहनाहचरिए पविसेइ, तइया विसण्णा चक्किसेवगा 'अम्ह सामिणो दिणं विवरं अम्हाणं देसु' त्ति पत्थमाणा इव मेइणीए पडंति / राहुगसिए आइच्चे इव भूमिमग्गे चक्कवटिम्मि 'भूमीए नराणं गयणम्मि य देवाणं महंतो कोलाहलो होत्था। निमीलियनेत्तो साममुहो छक्खंडभरहेसरो महीमज्झम्मि लज्जाए इव खणमेगं अवचिद्वेइ, अह एगस्स खणस्स अंते तेएण अइभासुरो निसाइ अंते दिणगरो इव मेइणीमज्झाओ निग्गच्छेइ, निग्गच्छिऊण अह सो एवं चिंतेइ-'निहिलेसुं जुद्धेसुं जूएस अधयकारगो विव अहं अमुणा विजिओ, गावीए भुत्तं दुव्वातिणादियं गोदोहगस्स इव मए साहियं भरई किं इमस्स उवओगाय सिया, एगम्मि भरहक्खित्तम्मि जुगवं उभे चक्कवट्टिणो कोसम्मि दुवे असिणो विव न दिट्ठा न य सुणिआ, देवेहिं इंदो पत्थिवेहिं च चक्कवट्टी विजिणिज्जइ इमं अणायण्णियपुव्वं खर-विसाणव्व सिया, अमुणा विजिओ किं अहं चक्कवट्टी न भवामि ! मए वि अविजिणिओ वीसाऽजयणिज्जो इमो तम्हा किं चक्कवट्टी ! एवं चिंतमाणस्स तस्स भरहस्स करम्मि चिंतामणिविडंबगेहिं जक्खराएहि समाणेऊण चक्कं समप्पियं / तस्स पच्चयाओ चक्कवट्टी अहं ति माणी सो भरहो चक्कं घाउलावट्टो अंभोयरय मंडलं पिच गयणम्मि भमाडेइ, तइया आगासम्मि अकालम्मि पलय-कालानलो इव अवरो वडवानलो विव वइरानलो ब, अकम्हा उच्चएहिं समुप्पUणुक्कापुंजो विव भसमाणं रविविम्बं पित्र विज्जुगोलगो विव जालाजालकरालं भमंतं तं चक्कं लक्खिज्जइ / चक्कवट्टिणा पहारटुं भमिज्जमाणं तं चक्कं दट्टण मणंसी बाहुबली मणंसि वियारेइ, अस्स ताय-पुत्ताभिमाणितणं घिरत्यु, मए दंडाउहम्मि समाणंमि जं भरहेसरस्स चक्कगहणं तओ य तस्स खत्तवयं धिद्धी, अहो ! बालगस्स उत्तरिज्जवत्थगहणसरिसं देवाणं समक्खं इमस्स उत्तमजुद्धपइण्णं घिरत्थु, रुहो भरहो तवंसी तेउलेसं पिब चक्कं पयंसंतो जह विस्सं बीहावित्था तह मंपि बीहाविउं इच्छेइ, जह एसो नियबाहुदंडाणं विक्कम जाणित्था तह चक्कस्स वि अस्स विक्कम जाणेउ एवं चिंतमाणस्स बाहुबलसालिणो बाहुबलिस्स उवरिं सव्वबलेण भरहो चक्कं विमुंचेइ / समागच्छंतं चक्कं दट्टणं बाहुबली चितेइ-इमं चक्कं जिण्णभायणं पिव दंडेण किं सिग्धं दले मि ! 'गेंदुअव्व हेलाए आहणिऊण किंवा पच्छा खेवेमि ! अदुव कमल-पत्तव्व लीलाए गयणम्मि किं उल्लालेमि ! जइ वा सिसुनालं इव मेइणीमज्झम्मि कि नसेमि ! अहव चवल-चडग-पोयं पिव किं हत्थेण गिण्हामि, अदुवा अवज्झावराहि 1 अनाकणितपूर्वम् / 2 वातसमूहावर्त्तः / 3 समुत्पन्नोल्कापुञ्ज इव / 1 मनस्वी / 5 प्रदर्शयन् / 6 कन्दुकवत् / 7 न्यस्यामि /

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