Book Title: Siri Usahanahchariyam
Author(s): Vijaykastursuri, Chandrodayvijay Gani
Publisher: Nemi Vigyan Kastursuri Gyanmandir
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________________ सिरिउसहनाहचरिय एवं वएइ-महीवइ ! सरलासय ! तुम्ह बंधवो महासत्तसालिणो पइण्णाय-महव्वया संसारासारयं नच्चा सव्वओ चत्तपुव्वभोगा एए वंतं पिव भुज्जो वि भोगे न खलु पडिगिण्हेइरे, एवं सामिणा भोगेसु निसिद्धो भरसेसरो साणुतावेण मणेण भुज्जो चिंतेइ -जइ ताव चत्तसंगा इमे भोगे न मुंजेइरे, तह वि एए पाणधारणं आहारं तु भुंजिस्सन्ति एवं चिंतिऊण उच्चएहिं पंचहि सयडसएहिं आहारं आणाविऊण सो भरहो पुव्वं पिच बंधुणो निमंतेइ / पहू भुज्जो वि एवं. वएइ-'भरहेसर ! "आहरियं आहाकम्मं अण्णाई मुणीणं न हि कप्पइ' एवं निसिद्धो भरहो मुज्जो वि अकयाऽकारियाऽसणाइणा आमंतेइ, जो 'अज्जवम्मि सव्वं सोहइ / धम्मचक्किणा 'राईद ! महारिसीणं रज्जपिंडो विन कप्पई' एवं भुज्जो वि चक्कवट्टी 'निराकरिओ / तइया सामिणा अहं सव्वहा पडिसिद्धो म्हि त्ति महंतेण. अणुतावेण राहुणा निसागरो विव दुहिओ / तया सहस्सक्खो भरहनरिंदस्स विलक्खत्तणं उवलक्खित्ता पहुं पुच्छेइ--'कइविहो अवग्गहो सिया' / सामी विवएइ-इदंचक्कि-नरिंद-गिहत्य-साहुसंबंधिभेयाओ पंचहा ओग्गहो सिया, एएसिं उत्तरेण उत्तरेण पुब्यो पुव्वो ओग्गहो बाहिज्जइ, जओ पुव्वुत्तपरुत्तविहीसुं परुत्तो विही बलवंतो सिया, तया सक्को वि कहेइ–देव ! जे साहयो मम उग्गहे विहरेइरे ताणं मए निओ अवग्गहो अणुण्णाओ ति वोत्तूणं सामिपाए बंदिऊण सके अवट्टिए समाणे भरहेसरो भुज्जो वि एवं चिन्तेइ एएहिं मुणीहिं जइवि मईयं असणाइयं न गहियं, तहवि अहं नियावग्गहाणुण्णाए कयत्थो होज्जा इअ हिययम्मि वियारिऊण पसण्णहियो महीवई सक्को विव सामिपायाणं पुरओ नियं ओग्गहं अणुजाणेइ, तो सो भरहो साहम्मियं वासवं पुच्छेइ-अहुणा अणेण भत्तपाणाइणा मए कि कज्ज ? / इभं भत्तपाणाइयं गुणुत्तराणं दायव्वं ति सक्केण भासिए समाणे स एवं झियाइ-साहुणो विणा के अण्णो गुणुत्तरा ?, आ ! जाणियं अहवा देसबिरया खलु सावगा ममाओ गुणुत्तरा संति, तागं मर इमं दायर, एयं च कायव्वं ति निण्णेऊण चकवट्टी सकस्स भासुरागिइवतं रूपं दागं विम्हिो समाणो पुच्छेइ-देववइ ! तुम्हे देवलोगे वि किं एरिसेण स्वेण चिढेह ? अहवा रूवंतरेण, जओ देवा कामरूविणो संति / देवराओ बवेइ-राय ! एरिसं रूवं तत्थ अम्हाणं न सिया, जं तत्थ रूवं तं मासेहि दटुं पि न पारिज्जइ / भरहो वएइ-सुरवइ ! अप्पणो तीए दिव्यागिईए दंसणेण चंदो चकोरं पिव मम नयणाई परिपीणाहि / ____ 1 सानुतापेन-सपश्चात्तापेन / 2 साधुनिमित्तकृतं समानीतमन्नादि। 3 आजवे। 4 निराकृतः-निषिद्धः / 5 पूर्वोक्त-परोक्तविध्योः / 6 समानधर्मवन्तम् / 7 शक्यते /

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