Book Title: Siri Usahanahchariyam
Author(s): Vijaykastursuri, Chandrodayvijay Gani
Publisher: Nemi Vigyan Kastursuri Gyanmandir

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Page 241
________________ 217 बजमीसजिणिदाणं भरहषिहियो संवरवंसाभरणं, देवीसिदत्यपुत्वदिसिभाणू / अभिणंदणजिणयंदो, हणेउ सइ अम्ह दुरियाई // 4 // जय मंगलामणकुमुय-चंदो मेहण्णयावणिजलहरो। सुमई जिणिदणाहो, जो भवियजण-मण-दुहहरणो // 5 // सामि ! धरनरिंदज़लहि-सोम ! सुसीमासरोवरसरोय ! / पउमप्पह-तित्थयरो !, तुम्भ सययं नमो अत्यु // 6 // जिणवर-सुपास ! रक्खसु, पुढवीमलयम्मि चंदणसरिच्छ ! सिरियपइट्ठनिवकुलाऽऽहारवरत्थंभ ! अम्हे वि // 7 // महसेणकुलमयंको !, लक्खमणाकुक्खिमाणसमराल ! / भयवं चंदप्पहजिण !, तारसु अम्हे भवोदहिओ // 8 // सुग्गीवतणय ! रामा-देवी-गंदणवणुश्विकप्पतरू / सुविहिजिणो मज्झ दिससु, परमपयपयासहगं मर // 9 // सिरिसीयलो जिणेसो, नंदादेवीमणंबुहि-मयंको / दढरहनरिंदतणओ, मणवंछियदायगो मज्झ // 10 // सिरिविण्हुमाउतणओ, विण्डुनरिंदकुलमोत्तियाभरणं / नीसेयससिरिरमणो, सिज्जंसो देउ मम मोक्खं // 11 // बमुपुज्जनरिंदमुओ, माइजयाहिययपंकयाइच्चो / अरिहंतवामुपुज्जो, सिवस्सिरि दिज्ज भव्वाणं // 12 // सामाणण-वरचंदो, कयवम्मनरिंदसागरससंको। अरिहो विमलजिणेसो, हिययं विमलं महं कुणउ // 13 // सिरिसिंहसेणनरवइ-कुलमंगलदीवगो अणंतजिणो / मुजसादेवीमणू, वियरसु अम्हं मुहमणंतं // 14 //

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