Book Title: Siri Usahanahchariyam
Author(s): Vijaykastursuri, Chandrodayvijay Gani
Publisher: Nemi Vigyan Kastursuri Gyanmandir
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________________ 192 सिरिउसहमाहबरिष दाणसीलो स भरहचकवट्टी जिणीसरसमायारनिवेदगाणं ताणं सड्ढ-बारहसुवणकोडीओ देइ, तारिसपुरिसाणं हि तं थोकं चिय / तओ सो सीहासणाओ उठाय भगवो दिसाओ अहिमुहं सत्त अट्ठ पयाई गंतूण विणएण पणमेइ, पणमिऊग भुज्जो सीहासणम्मि उवविसिऊण सामिपायपासगमणत्थं पुरंदरो मुरे इव नरिंदे आहवेइ, भरहनरिंदाऽऽणाए सम्वे भूवा वेलाए उच्चएहि समुहवीइपरंपरा इव सव्वो समागया / तइया सामिसमीवगमणाय नियाहिरोहगे तुबरमाणा विव दंतिणो तारयरं गज्जंति, तुरंगमा य हेसिरे, रहिणो पाइक्का य पमोयपुलगंचिया गच्छंति / जओ भगवओ समीवगमणम्मि रण्णो आणा सुगंधिसुवण्णसंणिहा सिया। जह महानईपूरजलाई उभयकुले न संमायंति, तह अट्ठावयाओ अउज्झानयरिं जाव थिआइंपि सेण्णाई न संमाइरे / तया गयणेवि सेयछत्तेहिं मऊरनिम्मियच्छत्तेहिं च मैदाइणीजउणनईणं वेणीसंगो विव होइ / आसारोहसुहडकर-ग्ग-स्थिआ कुंता वि फ़रमाणेहिं अप्पणो किरणेहि अवरे समु. क्खित्तकुंता इव सोहेइरे। गयारूढेहिं वीरकुंजरेहिं हरिसाओ उज्जियं गज्जंतेहिं कुंजरा वि उव्बूढकुंजरा विव रेहिरे / सेण्णाई पि जगवई पणमिउं चक्कवट्टित्तो वि अईव ऊँसुआई होत्था, जओ खग्गाश्रो खग्गकोसो वि अच्चंतं 'निसिओ होज्जा। दुवारपालेण विव ताणं महाकोलाहलेण सहामन्झत्थिअस्स चक्कवटिणो सव्वओ मिलिआओ सेण्णाओ निवेइज्जति / अह चकवट्टी जह मुणीसरो रागद्दोसजएण मणसुद्धिं कुणेइ तह सिणाणेण देहमुदि करेइ / तओ कयपायच्छित्तकोउअमंगलो भरहेसरो नियचरितं पिव उज्जलाई वत्थनेवत्थाई परिहेइ / मुद्धम्मि सेयाऽऽयवत्तेण पासेसुं च सेयचामरेहि विरायमाणो सो गेरपज्जंत-वेइगं गच्छेइ, आइच्चो पुवायलं पिव तं वेइगं आरोहिऊण महीवई नहमज्झं पिव उँदग्गं महागयं समारोहेइ / जंतधाराजलेहिं पिव भेरी-संखपडहाइपहाणतुरियमहारवेहिं गयणाभोगं भरंतो, जलहरेहिं पिव मयजलेहिं गएहि दिसाओ निरंभंतो, सागरो तरंगेहिं पिव तुरंगेहिं पुढवि ढकंतो, जुगलनरेहिं कप्पदुमो विव हरिस-तुरादि संजुओ संतेउरपरिवारो सो भरहनरीसरो खणेण अहावयगिरि पावेइ। सो गयाओ ओरुहिऊण महागिरि आरोहेइ, जह संजमेच्छू गिहत्थधम्माओ उत्तंग चारितं पिव / सो उत्तरदुवारेण समोसरणं पविसित्ता आणंद-कंदलुग्गम-वारिहरं पहुं पासेइ, पयाहिणतिगं च काऊण पहुणो य पायपंकयाइं नमंसिऊण सिरम्मि 1 स्वरयन्त इव / 2 गङ्गायमुनानद्योः / 3 उद्व्यूढकुजरा इव / 4 उत्सुकानि / 5 निशितः= तीक्ष्णः / 6 वननेपथ्यानि / * उदप्रम् -मनोहरम् / 8 हर्षत्वराभ्याम् / 9 भवरुण्य / .

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