Book Title: Siri Usahanahchariyam
Author(s): Vijaykastursuri, Chandrodayvijay Gani
Publisher: Nemi Vigyan Kastursuri Gyanmandir
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________________ भरावरिंदक्य-उपजिणीसरथुई / निबद्धंजली भरहो एवं थुइं आरभेइ-"सामि ! मारिसेहिं तव थवणं कलसेहिं अंभोहिणो माणसरिसं चेव, तहवि निरंकुसो हं भत्तीए तुमं थुणिस्सं, पहो ! जह दीवस्स 'संपक्काओ बट्टीओ वि दीवत्तणं पावेई तह तुमं आसिया भविणो तुमए तुल्ला हवंति, मत्त-इंदिय-गइंद-मयहरणोसलं मग्गसासणं तुव सासणं विजवइ, तिहुवणेसर ! घाइकम्माई हंतूणं जं सेसकम्माई उविक्खसि, तं तु तिहुवणाणुग्रहण मण्णेमि, विहु ! तुम्ह चलणलग्गा भविणो गरुलपक्खमज्झगया जणा समुदं पिवे भवसमुई लंघेइरे, अणंतकल्लाणदुमोल्लासर्णदोहलं जग-महा-मोहनिदा-पंच्चूस-सरिसं तुम्ह दंसणं जयइ, तुम्ह पाय-पंकय-फरिसाओ पाणीणं कम्माई दारिजंति, जंत्री चंदमउयकिरणेहिं पि दंतिदंता फुडन्ति हि : जगनाह ! जह वारिहरस्स वुट्टी मयंकस्स य चंदिमा तह तुम्हाणं पसाओ बि सव्वेसिं साहारणो चेव," एवं उसहणाई थुणिऊण पणमित्ता य भरहेसरो सामाणियसुरोव्व इंदस्स पिट्टीए निसीएइ, देवाणं पिट्टो अवरे नरा निसीएइरे, नराणं पच्छा नारीओ उड्ढटिआ एव चिटुंति / इत्थं पढमवप्षमज्मम्मि चउव्विहो संघो अणवज्जे सिरिजिणसासणे चउव्विहो धम्मो इव चिट्टेइ, बीयपायारम्मि विरोहिणो वि मिहो सोयरा विव ससिणेहा सहरिसा तिरिआ चिट्ठति, तइयपायारम्मि समुवगया नरिंदपमुहाणं देसणासवणुक्कण्णा गय-तुरंगाइ-वाहणपरंपरा चिति / तिहुवणसामी सव्वभासाणुगामि-मेह निग्योसगहीर-गिराए धम्मदेसणं विदेइ, तइया हरिसेण जिणदेसणं मुणमाणा तिरिअ-नरामरा अच्चंतभारविमुक्का इवे संपत्तवंछियपया विव कयाभिसेयकल्लाणा व झाणट्ठिय व्व अहमिंदत्तणं पत्ता इव परं बम्हपयं गया इव संजाया / देसणापज्जते भरहन रिंदो गहियमहव्वए नियभाउणी निरिक्खिऊण जायमणसंतावो मणंसि एवं चिंतेइ-एएसिं बंधणं रज्जं गिण्हमाणेण भस्सयरोगिणा विव निरंतरं अतित्तमणेण हा! मए कि कयं ?, भोगफलं इमं लच्छि अण्णेसि पि दितो म्हि, तं च दाणं मम मूढस्स भप्पम्मि हुयं पित्र निष्फलमेव / कागो वि कागे आहघिऊण अण्णाणं दाऊण उवजीवेइ, अहं तु कागेहितो वि हीणो, जो बंधुणी विणा भोगे भुंजामि / भुज्जो वि मम पुण्णोदएहिं जइ पुणो इमे दिज्जमाणे भोगे मास-खवणया साहवो भिक्ख पिव गिण्हेज्जा तइया वरं एवं आलोइऊण भरहो जंगगुरुणो पायमूलम्मि गंतूण रइयंजली नियबंधुणो भोगाय निमंतेइ / तइया उसहणाहों 1 सम्पर्कात् / 2 आश्रिताः / 3 'मदहरणौषधम् / 4 दोहदम् / 5 प्रत्यूषसदृशम्-प्रभातसमम् / 6 दीयन्ते / 7 अनवद्य-निष्पापे / 8 भस्मनि /

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