Book Title: Siri Usahanahchariyam
Author(s): Vijaykastursuri, Chandrodayvijay Gani
Publisher: Nemi Vigyan Kastursuri Gyanmandir

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Page 221
________________ सिरिउसहजिणीसरकहियभावितित्थयराणं सरूवं / 'जिणिदागमणसमायारो तत्थ अणिलेहिं पित्र 'तुरिएहिं निउत्तपुरिसेहिं समेच्च भरहेसरस्स निवेइओ, भरहनरिंदो तागं पुचपमाणं पारितोसियं देइ, जओ कप्पतरू दिणे दिणे दितो वि न हि झिज्जइ / स भरहो चक्की अट्ठावयगिरिम्मि समवसरियं सामि उवेच्च पयक्षिणं किच्चा नमंसिऊण एवं थुणेइ-जगवइ ! अबुहो विहं तुव पहावाओ तुम थुणेमि, जो मयंक पासंताणं मंदा वि दिट्ठी निम्मला होइ / सामि ! मोहंधयार-निम्मग्ग-जगपयासदी ग ! तुम्ह गयणं पिव अणंतं केवलनाणं जयइ, नाह ! पमायनिहानिमग्गाणं मारिसागं पुरिसाणं बोहकज्जेण अक्को विव तुमं पुणरुत्तं गयागयं कुणेसि, सामि ! जम्म-लक्खुवज्जियं कम्मं तुव आलोगणेण विलिज्जइ, कालेण हि "थिण्णीभूयं पि घयं अग्गिणा दवेज्जा, एगंतसुसमाओ वि सुसमदूसमकालो वि सोहणयमो, जत्थ कप्पदुमेहितो वि विसिडफलदायगो तुमं समुप्पण्णो सि / समग्ग-भुवणीसर ! जह रण्णा गामेहितो भुवणेहितो निया नयरी पैगरिसिज्जइ तह तुमए इमं भुषणं भूसिअं, पिया माया गुरु सामी सव्वे विजं न कुणेइरे, तं तुमं इक्कोवि अणे. गीभूय विव हियं विदेसि, निसा निसागरेणेव, हंसेणेव महासरो। वयणं तिलगेणेव, सोहए भुवणं तए / - इअ विणयसंपण्णो भरहेसरो जहविहिं भयवंतं थुणिऊण पणमिऊण य जहट्ठाणं मिसीएइ / भगवन्तं पद भरहनरवइणो पुच्छा, / भगवं आजोयण गामिणीए नर-तिरिअ-पुरलोग-भासासंवाइणीए गिराए वीसोवयारस्स कए देसणं विहेइ, देसणाविरईए. भरहेसरो पहुं नच्चा रोमंचिअदेहो कयंजली एवं विण्णवेइ-नाह ! इह भरह भूमीए जह तुम्हे विस्सहियगरा तह अण्णे धम्मचक्कवहिणो य कई भविस्सन्ति, ताणं च नयरं गोतं मायापियरे नाम आउसं वण्णं माणं अंतरं दिक्खा-गइणो य मज्झ कहिज्जाह / अह पह आइक्खइ-एयम्मि भरहक्खेत्तम्मि अवरे तेवीसं तित्थयरा एगारह य चक्कवहिणो होहिरे, तत्थ वीसइम-बावीसइमतित्थयरा गोयमगोत्तसमुन्भवा अण्णे य बावीस जिणेसरा कासवगोत्तिणो जाणियचा, सव्वे जिणवरा निवाणगामिणो हुति / / त्यरितैः / 2 क्षीयते / 3 वारंवारम् / 1 स्स्यानीभृतम्-घनीभूतम् / 5 प्रकृष्यते / / भाचण्टे /

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