Book Title: Siri Usahanahchariyam
Author(s): Vijaykastursuri, Chandrodayvijay Gani
Publisher: Nemi Vigyan Kastursuri Gyanmandir

View full book text
Previous | Next

Page 206
________________ 282 सिरिउसहनाहचरिप झाणानलेण घाइकम्माइं डहिऊण संपत्तकेवलनाणो सामिपरिसाए गमिस्सामि' एवं मणंसि चिंतमाणो बाहुबली पलंबियवाहू रयणपडिमव्व काउसग्गेण तत्थच्चिय चिठेइ / भरहो तं तारिसं ददतॄण अप्पणो य कुकम्मं वियारिऊण नमिरग्गीवो पुढवि पवेढे इच्छंतो विव होत्था, ईसि उण्हेहिं नयणमूहि कोवसेसं चयंतो इव भरहो सक्खं संतरसमुत्तिं पिव बाहुबलिभायरं नमसेइ, तस्स अहिगुवासणेच्छाए पणमंतो भरहो नहाऽऽयंसेसु संकंतीए नाणाख्वधरो संजाओ, अह भरहनरिंदो बाहुबलिणो गुणत्यु. इपुव्वयं नियावराह-रोगोसहिसरिस-स-निंदं एवं कुणेइ-'तुमं धण्णो सि जेण मज्झाणुकंपाए रज्जं चत्तं, अहं तु पावो उम्मत्तो अम्हि जेण असंतुहो तुम उबद्दवित्था / जे ससत्ति न जाणेइरे, जे य अनीइं कुणेइरे, जे य लोहेण जिणिज्जति ताणं धुरंधरो है होमि / भवतरुणो बीयं रज्जं ति जे न जाणंति. ते अहमा, तेहितो वि अहं अहमयमो, जओ जाणमाणो वि अहं न जहामि / तुम चिय तायस्स पुत्तो, जो तुमं तायपहं अणुगच्छित्था, जइ अहं पि भवारिसो भवाभि तया तस्स पुत्तो होज्जा' एवं पच्छातावजलेहिं विसायपंकं उम्मूलित्ता बाहुबलिस्स पुत्तं सोमनस तस्स रज्जम्मि निवेसेइ / तो पभिई ताण ताणं पुरिसरयणाणं अबीयं उप्पत्तिकारणं साहा-सय-समाउलो सोमवंसो समुप्पण्णो / तओ सयलपरिवारसहिओ भरहो बाहुवलिं पणमित्ता सम्ग-रज्जसिरि-सरिसिं अउज्झापुरि गच्छेइ / भयवं बाहुबली मुणी वि भूमीओ समुभूओ इव गयणाओ ओइण्णो इव तत्थ एगो संचिट्ठइ, झाणिक्कमग्गो नासिगंत-वीसंतनयणजुगो निक्कंपो सो मुणी दिसिसाइणसंकू इव सोहइ, सो वणरुक्खव्व देहेण वन्हिकणे इव उण्हे वालुयाकणे विकिरतं गिम्हवायसमूहं सहेइ, सो सुहज्ज्ञाणसुहामग्गो मुद्धम्मि वि संठियं अग्गिकुंडं पित्र , गिम्ह-मज्झहदिणयरं च न जाणेइ, स मत्थयाओ पायपज्जतं जाव गिम्हतावाओ रय-पंकीभूयसेय-जलेहिं पंकनिग्गओ कोलो इव विभाइ, एसो पाउसम्मि महाझंझावायानिल-घुण्णियपायवेहिं धाराऽऽसारेहिं गिरी विव मणयं न भिदिज्जिइ, एस विज्जुपाएमु निग्घाय-कंपिय-गिरिसिहरेसु वि न काउस्सग्गाओ नावि झाणाओ चलेइ, तस्स चरणजुगं हिट्ठवहंतवारि-समुप्पण्णसेवालेहिं निज्जणगामवावीसोवाणं व लिपिज्जइ, हेमंतम्मि हिमरूवजायहत्थिमेत्तजलसरियाए वि कम्मिधण-डहणुज्जुत्तज्झाणग्गिणा सो सुहं चिोइ, हिमदद्धतरूमुं 'हेमंतराईसुं कुन्दपुप्फर बाहुबलिणो धम्मज्झाणं विसेसेण वढइ, रण्णमहिसा महतरुक्खंधे विव सिंगघायपुटवयं तम्मि खंधकंडूयणं विहेइरे, गंडयपसवो . 1 नखादशेषु / 2 शूकरः / 3 प्रकम्पित / 1 वेगवद्धारावृष्टिभिः। 5 वापीसोपानवत् / 6 हेमन्तरोत्रिषु / 7 गण्डका गेंडो।

Loading...

Page Navigation
1 ... 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250