Book Title: Siri Usahanahchariyam
Author(s): Vijaykastursuri, Chandrodayvijay Gani
Publisher: Nemi Vigyan Kastursuri Gyanmandir

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Page 199
________________ भरहवाहुबलीणं दिट्टिपमुहजुद्धं / 175 जोगिणो विव उभे निच्चललोयणा मिहो निज्झायंता ते चिरकालं संचिढेइरे, तया जिट्ठस्स उसहसामिनंदणस्स भरहस्स नेत्ताई आइच्चकरकंतनीलुप्पलुव्व निमीलेइरे / भरहछक्खंड विजयलद्धाए महईए कित्तीए चक्कवट्टिणो अक्खीई अंसुयजलमिसाओ जलं दितीव / तया सिराइं धुणंता अमरा पभायम्मि पायवा इव बाहुबलिम्मि पुप्फबुढेि विहेइरे / बाहुबलिणो सोमप्पह-पमुहवीरेहिं आइच्चोदए पक्खी हिं पिव हरिसकोलाहलो कुणिज्जइ, तकालम्मि उज्जयनद्यारंभे कित्ति-नट्टगीए इव वाहुब लिस्स रणो बलेहिं जयतुरियाई वाइज्जति, भरहस्सावि सुहडा मुच्छिया इव संसुत्ता इव रोगाउरा इव मंदतेआ हवंति, अन्धयारपया सेहिं मेरुस्स उभे पासा विव ताई दोणि बलाई विसायहरिसेहिं जुज्जंति / तइया बाहुबली 'कागतालिजनाएण मए विजियं' ति मा वएसु, अहुणा वायाजुद्धेणा वि जुज्झाहि त्ति चक्कवष्टि वएइ / बाहुबलिणो वयणं सोच्चा चरणटो अहीच सामरिसो चक्की वि जयणसील ! 'एवं हवेउ' ति बाहुवलिं भासेइ / ईसाणिंदस्स वसहो विव निणायं, सक्कस्स एरावो इव विहियं, वारिधरो विव थणियं उच्चएहिं भरहो सीहनायं कुणेइ। तस्स सिंहनाओ जुद्धपेक्खगाणं देवाणं विमाणे पाडितो विव, गयणाओ गह-नक्खत्त-तारगाओ संसमाणो इव, कुलाऽयलाणं अच्चुच्चएहिं सिहराई चालितोव्व, समंताओ जलहीणं जलाई उच्छालितो विव, महानईए पूरजलं अभिओ तीराइं पिव पसरंतो सग्ग- भूमिसुं वावेइ / तेण नाएण दुब्बुद्धिणो गुरुणो आणं पिव रहजोइयतुरगा वैग्गं न गणिति, पिसुणा सुगिरं पिव हत्थिणो अंकुसे न माणेइरे, 'सिंभरोगिणो कडुत्तणं पिव आसा कसं न जाणेइरे, जारपुरिसा लज्ज पिव उट्टा नासारज्जु न गणेइरे, भूय-गसिया विव वेसरा कसाघायं न वेयंति, के वि तेण नाएण तसन्ता थिरयं न धरेइरे / ___ अह बाहुबली वि सिंहनायं विहेइ-सो एरिसो, आगच्छंत-गरुल-पक्ख-निग्योसबुद्धीए पायालाओ वि पायालं पविसिउं इच्छमाणेहिं पिव उरगेहि, जलहिमज्झम्मि य अभंतरपविट्ठ-मंदरायल मंथण-सह-सकाए सव्वओ वि तसमाणेहिं जलजंतूहि, भुज्जो इंद-विमुत्त-दभोलि-निणाय-भरेण अप्पणो विणासं आसकमाणेहिं कंपमाणेहिं कुलायलेहि, कप्पंतकाल-पुक्खलावद्द्य-मेह-मुत्त-विज्जुझुणिभमेण भूमिपीढम्मि लुढं तेहिं मझलोगनिवासीहिं, असमय-समागय-दइच्चावक्खंदकोलाहलब्भमाओ य वाउलेहिं अमरगणेहिं अइदुस्सवो सुणिज्जमाणो लोगनालिफद्धाए अर्हरुत्तरं वड्ढमाणो बाहुबलिणा अइभइरवो 1 पार्वाविव / 2 स्पृष्टः / 3 संस्रयन्-भ्रंशयन् / 4 व्याप्नोति / 5 वल्गाम-लगाम / 6 लेष्मरोगिणः / 7 कशाम्-चाबूक / 8 अधरोत्तरम्-अध उपरि /

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