Book Title: Siri Usahanahchariyam
Author(s): Vijaykastursuri, Chandrodayvijay Gani
Publisher: Nemi Vigyan Kastursuri Gyanmandir
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________________ जुद्धनिवारणटुं देवाणं विण्णवणं / राय ! महातरुधंसणम्मि इभस्स गंडकंडूई इव तुव जुद्धम्मि बाहुकंडू चेव धुवं कारणं, जह मत्ताणं वण-गयागं 'संफिट्टो वणभंगस्स हेऊ तह तुम्हाणं भुयकीला वि विस्सस्स विणासाय चेव सिया, जह मंसभक्खिणा खणियमुहढें खगकुलं विणासिज्जइ तह तुम्हेहिं कीलानिमित्तं विस्सं संहरिउँ कि आरद्धं ? / मयंकाओ अग्गिवुट्ठी विव जगरक्खगाओ किवालूओ उसहपहुणो जायजम्मस्स तुव किं इमं जुत्तं ?, तम्हा पुढविवइ ! संगेहितो संजमीच इमाओ घोराओ संगामाओ विरमाहि, नियं गेहं वच्चाहि / तुमम्मि आगए तुम्ह अणुओ बाहुबली वि आगओ, तुमम्मि गए एसो वि जाहिइ, कारणाओ खलु कज्ज हि होइ, जगक्खयपावपरिहाराओ तुम्हाणं मुहं होउ, दुण्इं पि सेण्णाणं च रणचायाओ भई अत्थु, तुम्हेच्चय-सेण्ण-भार-भूमिभंगविरहाओ भूमिगभनिवासिणो भवणवइपमुहाऽसुरिंदाइणो सुहिणो संतु, तुम्हकेर-सेण्णविमदणाऽभावाओ इह भूमी पव्वया जलहिणो पयाओ सत्ताई च सव्वओ खोहं चयंतु, तुम्ह समर-संभावि-जग-संहार-संकाविरहिया सव्वे वि देवा मुहं चिटुंतु' इअ आगमणपओयणं वोत्तूणं विरएसु देवेसुं भरहेसरो मेहगज्जण गहीर-गिराए भासेइतुम्हेहिं विणा विस्सहियंगरं इमं वायं के बवितु, लोगो हि पाएण पर-कोउहल्लं पेक्खि उदासीणो होइ / किंतु इह संगामुत्थाणकारणं अण्णहा चेव, हियकंखिरेहिं तुम्हेहिं जुत्तीए अण्णहच्चिय ऊहिय, 'कज्जमूलं अवियाणिऊण अप्पणा किंच अहिऊण सासगस्स सुरगुरुणो वि सासणं निष्फलं होज्जा' / अहं बलवंतो म्हि त्ति न खलु अहं संगामकरणाभिलासी जाओ, 'भूइटे तेल्ले समाणे 'सेलमर्पण किं विहिज्जइ' ? तह य छक्खंडभरहखित्तम्मि नरिंदे जिगंतस्स मज्झ पडिमल्लो न आसी तह अज्जावि न विज्जइ, पडिमल्लो उ जयाजयनिबंधणं सत्त चेव सिया, किंतु देव्वजोगाओ एव बाहुबलिणो मम य भेश्रो जाओ अस्थि / छहिँ वाससहस्साई दिसिविजयं काऊणं समागो समाणो अहं तं बाहुवलिं 'अण्णारिसं पिव पेक्खेमि, एत्थ भूइट्ठो कालो कारणं, तओ दुवालससु अभिसेगवासेसु सो राहुबली मज्झ समीवे नहि आगओ, तत्थ मए तस्स पमाओ तक्किओ, तत्तो तरस आहवणत्थं मए दए पेसिए वि जं सो न आगच्छिस्था तत्थ वि मंतीणं मंतणदोसो कारणं तक्किन्नइ / एकं न लोहाओ न य कोवाओ आहबेमि, किंतु एगम्मि वि अणमिरे चक्कं अंतो न पविसेज्जा / चक्करयण नयरिं न पविसेइ, एसो य मं न नमेइ नि एयाणं परुप्परफद्धाए संकडम्मि पडिओ म्हि / सो 1 संयोगो-मिलनं च / 1 कुतूहलम् / 2 ऊहितम्-तर्कितम् / 3 शैल:-पर्वतः / 1 अन्य दृशमिव

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