Book Title: Siri Usahanahchariyam
Author(s): Vijaykastursuri, Chandrodayvijay Gani
Publisher: Nemi Vigyan Kastursuri Gyanmandir

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Page 196
________________ 172 सिरिउसहनाहचरिए अहमेण हि जुद्धेण भूइट-लोग-पलयाओ अकालम्मि पलओ भवे / तओ दिटिजुद्धा ईहिं जं झुझियव्यं तं सोहणं, तेसु हि जुद्धेसु अप्पणो माणसिद्धी लोगाणं च पलओ न सिया / आम त्ति बाहुबलिम्मि वयंते ते देवा ताणं दुण्हं जुद्धं दट्टुं पउरा विव नाइदुरे चिटेहरे / अह बाहुबलिस्स आणाए गयत्थिओ ओयंसी पडिहारो गयन्च गर्जतो नियसेणिए एवं वएइ-भो भो ! सव्वसामंतरायागो ! सुहडा ! य चिरं चिंतमाणाणं तुम्हाणं पुत्तलाहो वित्र अभिडं सामिकज्ज उवटिंअं, परंतु तुम्हाणं मंदपुण्णत्तणेण देवेहि महाबाहू अयं देवो भरहेण सह दंदजुद्धनिमित्तं पत्थिओ, सयं पि दंदजुद्धाभिलासी सिया, तत्थ सुरेहिं पत्थिओ पुणो किं ? तओ इंदतुल्लविक्कमो बाहुबलिनरिंदो तुम्हे जुद्धाओ निसेहेइ, तम्हा मज्झत्थदेवेहिं पिव तुम्हेहिं हत्थिमल्लो विव अबीयमल्लो जुज्झिज्जमाणो एसी सामी पेक्खणीओ। तओ महोयंसिणो तुम्हे रहे आसे कुंजरे य वालिऊण 'वंकीभूया गहा विव अवक्कमेह, करंडगेसु पन्नगे इव कोसेसु खग्गे खिवेह, के उणो विव उद्धीमुहे कुंते कोसएसुं विमुंचेह, महागया करे इव उड्ढीकए मोग्गरे अवणमेह, गडालाओ भुभयं पिव धणुकाओ जी उत्तारेह, अत्थं निहाणे पिव वाणं तोणीरे "निहेह, जलहरा विज्जूओ विव सल्लाइं च संवरेह / वइरनिग्योसेणेव पडिहारगिराए घुण्णिा बाहुबलिणी सेणिगा चित्तम्मि एवं चिंतेइरे-"अहो भाविरणाओ वणिएहिं पिव भीएहि, भरहेसरसेण्णेहिंतो उच्चएहिं . लद्धलंचेहिं पिव, अम्हाणं पुन्वभववेरिहिं पित्र अकम्हा आगएहि विबुहेहिं हा ! पहुं पत्थिऊण अहुणा जुद्धसवो निरुद्वो, भोयणाय उवविद्वाणं अग्गओ भायणं इव, लालणाय उवसप्पंताणं पेलिअंकाओ मुत्तो विव, अहो ! कूवाओ निग्गच्छमाणागं आयड्ढणी रज्जू विव अम्हाणं आगओ वि रणसवो दइव्वेण हरिओ / भरहतुल्लो अण्णो को पडिपक्खो होही, जेण अम्हे संगामे सामिणो रिणरहिया होहिस्सामो / "दायादेहिं पिव चोरेहिं पिव सुवासिणीपुत्तेहिं पिव अम्हेहिं बाहुबलिस्स धणं मुहा गहियं / नूणं अम्हाणं इमं बाहुदंडवीरिअं अरण्णसमुभवरुक्खाणं पुप्फसोरहं पिब मुहा गयं / कीवेहि इत्थीणं पिव अम्हेहि "अत्थाणं संगहो, तह य सुगेहिं अत्यन्भासो विव सत्थब्भासो मुहा विहिओ / तावसदारगर्हि कामसत्थपरिन्नाणं पिव अम्हेहिं इमं पाइक्कत्तणं पि निष्फलं गहियं / एए मयंगया संगामभासं तुरंगमा य परिस्समजयन्भासं हयबुद्धीहिं अम्हेहिं मुहेव कारिया / 1 वक्रीभूताः / 2 अपकामत / 3 केतून् / 4 ऊर्ध्वमुखान् / 5 ध्रुवम् भवां / 6 ज्याम् धनुर्जीवाम् / 7 निधत्त / 8 घूर्णिताः भ्रान्ताः / 9 पर्यङ्कात् पलंगथी। 10 आकर्षणी-खेंचनारी / 11 दायादैः= पैतकसम्पत्तिभागहरैः / 12 चिरपितृगृहनिवासिन्याः पुत्रौः / 13 क्लीवैः / 14 अस्त्राणाम् / 15 शास्त्रा भ्यास इव शस्त्राभ्यासः /

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