Book Title: Siri Usahanahchariyam
Author(s): Vijaykastursuri, Chandrodayvijay Gani
Publisher: Nemi Vigyan Kastursuri Gyanmandir
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________________ 142 सिरिउसहनाहचरिप पुरवरसहस्साणं सो पहू, नवनवइसहस्सदोणमुहाणं अडयालीससहस्सपट्टणाणं च सो अहिवई, चउवीससहस्सकब्बड- मडंबाणं सामी, वीससहस्साऽऽगराणं सोलसण्हं च खेडसहस्साणं पसासगो, चउदसण्हं संवाहसहस्साणं छप्पण्ण-अंतरदीवाणं एगृणपण्णासकुरज्जाणं च नायगो, एवं सो भरहखेत्तमज्झगयाणं अण्णेसि पि वत्थूण सासगो होत्था / विणीयानयरीए संठिओ भरहनरिंदो अखंडियमाहिपत्तं कुणंतो अभिसेगमहूसवपज्जते नियजणे सुमरिउं पउत्तो, तो निउत्तपुरिसा सद्विवाससहस्साई जाव विरहेण दंसणुकं- . ठियनियजणे रण्णो दंसेइ सुंदरिं दहणं भरहस्स चिंता सुंदरीए य दिक्खा ___ तओ स-पुरिसेहिं नामग्गहणपुब्वयं दंसिज्जमाणं बाहुबलिणो सोयरं सुंदरिं सो गुणसुंदरो भरहो पेक्खेइ-सा केरिसी, गिम्हसमयकता नइव्व किसयरा, हिमसंपक्कवसाओ कमलिनीव मिलाणा, हेमंतकालचंदकला इव पणदुरूवलायण्णा, सुक्कदलकयलीव पंडुखामकबोला / तहाविहं परावट्टियरूवं तं संपेक्खिऊण सक्कोहं भरहचक्कवट्टी सनिउत्तजणे वएइ-अरे ! किं अम्हकेरेवि गेहम्मि कयावि. ओयणाई न ?, लवगंबुहिम्मि लवणाई पि किं न विज्जते ?, विविहरसबईविउसा सूवगारा किं न संति ?, अहवा अमुणो किं निरायरा आजीविगा चोरा य ?, दक्खा-खज्जूरपमुहाई खज्जाइंपि कि इह न सिया ?, सुवग्णगिरिम्मि सुवणंपि किं नहि विज्जइ ?, उज्जाणेसुं ते रुक्खा फलरहिया किं संति ?, नंदणवगंमि पि हि तरवो किं न हि फलंति ?, घेडापीणाणं पि घेणणं दुद्धाई इह किं न वा सिया ?, कामधेणू वि मुक्कत्थणपवाहा किं णु जाया ?, अह भोज्जाइसंपयासु समाणासु वि सुंदरी जइ न किंचि मुंजेइ, तो एसा कि रोगपीलिआ ? / जइ कार्यसुंदेरिमतक्करो इमीए को वि आमओ सिया ता किं सव्वे वि भिसयवरा खयं गया ?, जइ अम्हाणं मंदिरेसु दिव्वाओ ओसहीओ न पाविज्जति तया हिमगिरी वि संपइ ओसहिविरहिओ किं / दलितणयभिव किसयम इमं पासंतो अहं मेमि, तम्हा अहो ! सत्तूहि पिव तुम्हेहिं अहं वंचिओ अम्हि / ते वि निओगिणो भरहं पणमिऊण एवं वयंति-'देविंदस्सेव देवस्स गेहम्मि सम्बंपि विजइ, किंतु देवो जओ पभिई दिसाविजयं काउं निग्गओ तो पभिई एसा पाणताणढं केवलं आयंबि 1 संबाधः-नगरविशेषः। 2 आधिपत्यम् / 3 सोदराम् / 4 'ओक्रान्ता / 5 घटापीनानाम्-घडाजेवा आउवाळी गाय. / 6 सौन्दर्यम् / 7 दूये।

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