Book Title: Siri Usahanahchariyam
Author(s): Vijaykastursuri, Chandrodayvijay Gani
Publisher: Nemi Vigyan Kastursuri Gyanmandir

View full book text
Previous | Next

Page 188
________________ सिरिउसहनाहचरिए जायंति, जलहिणो खुम्भंति, कूराइं पि सत्ताई सवओ गुहासु पविसिरे, महोरगा विवराओ वि विवरेसु निलिज्जंति, पाहाणखंडीभवंतसिहरा गिरिणो कंपेइरे, कुम्मराओ वि संकुयंत-पायकण्ठं बीहेइ, गयणं धंसेइन्व, पुढवी विदायइ इव जायइ / अह रायदुवारपालेणेव रण-तुरिय-नाएण पेरिआ उभएसु सेण्णेसु सेणिगा जुई सज्जेइरे / केवि रणूसाहेससंतदेहत्तो तुटूंतीओ कवय-नालिगाओ भुज्जो भुज्जो नवनवाओ ताओ समारएइरे, के वि नेहेण सयं चिय तुरंगमे संनाहिति, 'मुहडा हि. चाहणेसु अहिगं रक्खं कुणेइरे' / के वि आसे संनाहिऊण परिक्खि आरोहिऊण वाहिति, 'दुसिक्खिो जडो अ आसो आसारोहम्मि सत्तुव्व आयरेइ' / संनाहगाहणम्मि हेसमाणे तुरङ्गमे केवि देवे इव अच्चेइरे, जुद्धम्मि हेसा हि जयमुइणी सिया / के वि सन्नाह -रहियाऽऽसे लद्भण अप्पणो-सन्नाहे चएईरे, 'समरेसुं बाहुपरकमवंताणं इंम हि पुरिसव्वयं' / समुद्दे मच्छो विव घोररणम्मि खलणारहिओ संचरंतो तुम अप्पणो कोसलं दंसिज्जाहि त्ति के वि सारहिं पसासिति / पहिगा पोहेएहिं पिव के वि चिर समरं पासमाणा नियरहे समंतओ सत्थेहिं पूरिति / के वि चारणे इव दूराओ अप्पजाणवणटुं उत्तंभियनियचिन्हे झयथभे दिढयरे विहेइरे / के वि मुसिलिट्ठ-जुग-रेहिर-रहेसु परसेण्ण-जलनिहि-जलकंतमणिनिहे तुरंगमे जुजेइरे / के वि सारहीणं दिढयराई कवयाई अप्पिंति, 'आससहिया वि रहा सारहिं विणा निप्फला हि' / के वि नियवाहाओ इव उद्दाम-लोह-वलय-सेणि-सम्पक्ककककसे गयदन्ते पूयंति / केइ समागच्छंतीए जयसिरीए वासघराइं पिव पडागामालारेहिराओ सारीओ हत्थीसु आरोविंति, कत्थूरीहिं पिव निग्गच्छंत-गंड-गयमएहिं सउणं ति वयंता केवि तिलए कुणंति / के वि अण्ण-गय-मयगंधवासियं पवणं पि असहिरे मणुव्व दुद्धरे गए आरोहेइरे / सव्वे वि हत्थारोहा सव्वेहिं सिन्धुरेहिं समरमहसव-सिंगार-कंचुए इच सुवण्णमइयकंकडे गहाविंति, तह य मुंडग्गेसु उण्णालनील-कमल-लीलाए लोहमुग्गरे गाहिति / तह हस्थिवगा जमस्स आहरियदन्ते विव किण्ड-लोह-मइय-तिक्खकोसँए दंतिदंतेसुं "विणिहेइरे / सत्थपुण्णा वेसरा सयडा य अणुगच्छंतु, अण्णह लहुहत्थाणं सत्थं कहं पूरिस्सइ / निरंतरसंगामकम्मपराणं वीराणं जइ अग्गे धरियाई वम्माइं तुहिस्संति, तओ वम्म 1 विद्रातीव / 2 उच्छ्वसद्=पारित यतु। 3 संनाहयन्ति-सामने भाटे तर वगैरेथी सर परेछ / हेषा-अश्वशब्दः / 5 पाथेयेरिव / 6 अवलम्बित. / 7 निजबाहनिव / 8 शारी: गजपर्याणानिहायी पक्षाय माडी वगेरे / 9 कंकटान्-कवचान् / 10 कोशकान्-शस्त्रविशेषान् / 11 विनिदधति /

Loading...

Page Navigation
1 ... 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250