Book Title: Siri Usahanahchariyam
Author(s): Vijaykastursuri, Chandrodayvijay Gani
Publisher: Nemi Vigyan Kastursuri Gyanmandir
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________________ 160 सिरिउसहनाहचरिप मणयंपि न उविक्खिरे / ज सयलभरहविजयवंतस्स पहुणो इह अविजओ तं किल समुई उत्तिण्णस्स गोप्पयम्मि निमज्जणसरिसं। किंच इमं कत्थ वि सुयं कत्थवि दिटं वा, जं पुढवीए चक्कवहिणो वि पौडिप्फद्धी राया रज्जं मुंजेइ ? / देव ! तत्थ अविणीयम्मि भाउसंबंधमेत्तजाओ जो नेहो तं एवं सामिणो एगहत्थेण तालिया-वायणमिव / 'वेसाजणे विवनेहरहिए बाहुबलिम्मि वि सामी नेहालू अत्थि' एवं वयंते अम्हे जइ देवो निसेहइ, निसेहेउ, किंतु 'सव्वे सत्तुणो विजिणिऊण अंतो पविसिस्सामि' ति निच्चएण अन्जावि बाहिरं संठियं चक्कं देवो कहं निसेहिहिइ / भाउणो मिसेण एसो सत्तू नहि उवेक्खिउं जुज्जइ, अमुं अत्थं अवरे वि मंतिणो पह पुच्छउ / सुसेणसेणावइणो वयणसवणाणंतरं भरहनरिंदेण सम्मुहावलोयणेण पुढो मुरगुरुसरिसो सईवऽग्गणी एवं वएइ-सेणाइवणा जुत्तं वुत्तं, अण्णो को इमं वोत्तुं सक्को ?, विक्कमपयासभोरवो हि सामितेयं उविक्खिंति, नियपहाववुड्ढीए. पहुणा आइट्टा निओगिणो पाएणं नियलाहटुं उत्तरं रएइरे वसणं वा वड्ढावेइरे / अयं तु सेणाहिई देवतेयस्स पवणो पावगरसेव केवलं बुढिहेयवे सिया। सामि ! चक्करयणमिव एसो वि सेणाहिबई वं पि सत्तुसेसं अजिणिऊण न तूसेइ / तम्हा अलं विलंबेण, तुम्हाणं आणाए अज्जच्चिय दंडहत्थेहि पयाणभंभा पडिपक्खो विव ताडिज्जउ / सुघोसाघंटानाएण देवा वित्र पसप्पंतेण भंभानिणाएण सवाहण-परिच्छदा सेण्णा मिलंतु, तेयाभिवुइढीए उत्तरदिसाभिमुहं आइच्चो इव तक्खसिलानयरिं पइ. देवी पयाणं च विहेउ, सयं पि गंतूण सामी नियभाउणो सुबंधुत्तणं पेक्खउ, सुवेगदूयमुहसंदेस सच्चं असच्चं वा जाणेउ, तो भरहेसरो सइववयणं तहत्ति पडिवज्जेइ, 'विउसा हि अवरस्सावि जुत्तं वयण मण्णेइरे' / तओ सुहदिवसे कय-पयाण-मंगलो सो भरहनरिंदो उण्णयगिरि पिव नागं आरोहेइ / अण्णनरिंदिक्कसेणासरिसेहिं हयगयरहोरुडेहिं सहस्ससो पत्तीहिं पयाणतुरियाई वाइज्जन्ति / अह पयाण-तुरियनिणाएहिं, समतालनिग्योसेहिं संगीयकारिणो विव सबसेण्णाई मिलेइरे / नरिंद-मंतिसामंत-सेणावई हिं परिवारिओ अणेग-मुत्ति-धरो इव भरहनरिंदो नयरीए वार्हि निज्जाइ / भरहनरिंदस्स संगामकरणटुं पयाणं अह भरहेसरस्स जक्खसहस्सेणाहिट्ठियं चक्करयणं सेणावई विव पुरस्सरं हवइ, सत्तूणं गुत्तचरा इव रण्णो सेणुत्थिा पयाणसूयगा पंसुपूरा आसु दूरं पसप्पंति, तइया पयलियलक्खसंख-गयवरेहिं गैउप्पत्तिभूमीओ गयरहिया इव लक्खिज्जति / तस्स 1 प्रतिस्पर्धी / 2 सचिवाग्रणी / 3 सैन्याः-सैनिकाः। 4 गजोत्पत्तिभूमयः /

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