Book Title: Siri Usahanahchariyam
Author(s): Vijaykastursuri, Chandrodayvijay Gani
Publisher: Nemi Vigyan Kastursuri Gyanmandir
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________________ भरहस्स दिसिजत्ता। 129 चिलाए भासेइरे। गयणसंठिअमेहमुहनागकुमारदेवे दणं अचंततिसिआ विव भालपटेसुं निबद्धंजलिणो ते वयंति-पुवं अणकंते अम्हाणं देसे अहुणा कोवि आगओ अस्थि, जह सो गच्छेज्जा तह कुणेह त्ति / ते मेहमुहदेवा एवं कहिति-महिंदो विव देवासुरनरिंदाणमवि अजयणिज्जो अयं भरहचक्कवट्टी अस्थि, 'टंकाणं गिरिपासाणो व्व महीयलंमि चक्कवट्टी मंत-तंत-विस-सत्थ-वन्हि-विज्जाईणं अगोयरो होइ, तह वि हि तुम्हाण अणुरोहेण अम्हे इमस्स उवसगं करिस्सामु त्ति वोत्तूण ते तिरोहिया। तक्खणाओ कज्जलसामवण्णा जलहरा भूमीयलाओ उड्डे ऊण अंभोहिणो इव नहयलं भरता संजायते, ते विज्जुरूवतज्जणीए चक्कवहिस्स सेणं तज्जंतीव, उज्जियगज्जियरवेहि असई अक्कोसंतीव नजति, तक्खणंमि ते मेहा नरिंदखंधावारस्स चुण्णकरणलं तप्पमाणुज्जयवइरसिलोवमा अवरिं चिट्ठति, ते लोहग्गेहिं इव नाराएहिं विव दंडेहि पिव जलधाराहिं वरिसिउं तत्थ पट्टति, सवओ वि मेहजलेण भूयले पूरिज्जमाणे तत्थ रहा नावा विव, गयाइणो मगरा इव दीसंति, कालरत्तिव्व फुरंतेण तेण मेहंधयारेण आइच्चो कत्थ गओ इव, पव्वया पणट्ठा विव आसि। तयाणि महीयलंमि एगंधयारत्तणं च इक्कजलभावो य त्ति जुगवं दुणि धम्मा संजाया। चक्कघट्टी वि अणिठ-दाइणि उक्किट्ठवुट्टि पेक्खिऊण नियहत्थेण पियभिच्चं पिव चम्मरयणं फासेइ, चक्कवट्टिकरफुडं तं चम्मरयणं उत्तरदिसिपवणेण वारिधरो विव दुवालसजोयणाई वइिढत्था, समुहमज्झस्स भूयले विव जलोवरिथिए तंमि चम्मरयणे समारुहिय ससेणिओ नरिंदो चिहेइ / तह विडुमेहिं खीरसमुद्दमिव अइचारूहि नवनवइसहस्सेहिं सुवण्णसलागाहिं मंडियं, नालेण पंकयमिव वण-गंथिविहीणेण सरलत्तणरेहिरेण सुवण्णदंडेण सोहियं, जलाऽऽतव-वाउ-रेणुरक्खणक्खमं छत्तं पुढवीवई पाणिणा फरिसेइ, तं च चम्मरयणं व वड्ढेइ / नरिंदो अंधयारविणासणटं छत्तदंडस्स उवरि तेएण अइक्कंतभाणुं मणिरयणं ठवेइ। तया छत्तचम्मरयणाणं तं संपुढं तरंतं अंडं पिव विराएइ, तओ पहुडिं लोगंमि 'बम्हंडं' ति कप्पणा होत्था / गिहिरयणप्पहावओ सुक्खेत्तंमि विव चम्मरयणंमि पच्चूसे ववियाई धण्णाई सायं निप्फैजंति, तह पभाए उत्ता कोहंड-पालक्का-मूलगाइणो दिणंते जायंते, दिणमुहंमि वविया चूय-कयलीपमुहफलदुमा महापुरिसाणं पारंभा विव दिवसपज्जते फलेइरे, तत्थ थिआ पमुइयजणा एयाई धण्ण-साग-फलाई भुंजंति / उज्जाणकेलिगयमणूसा इव सेण्ण-परिस्समं न जाणेइरे, एवं भरहनरवई सपरिवारो नियपासायत्थिओ विव तत्थ चम्मरयणच्छत्तरयणमझंमि सत्थो अवचिठेइ / तया तत्थ कप्पंतकालुब्ब अविरयवरिसमाणाणं ताणं 1 पाषाणभेदनशस्त्राणाम् / 2 असकृत् / 3 निष्पद्यन्ते / 4 पालक्या-शाकविशेषः / 17

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