Book Title: Siddha Hemchandra Shabdanushasanam Part 01
Author(s): Jagdishbhai
Publisher: Jagdishbhai

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Page 306
________________ सू० १-१-२२ ૨૭૧ "दिद्युद्ददृद्" [५.२.८३.] इति क्विपि 'वाग्' इति निपात्यते, तामिच्छति क्यनि वाच्यति, अन पदत्वाभावात् “चजः कगम्" [२.१.८६.] इति ककाराभावः । ("षोंच् अन्तकर्मणि") "स्यतेरी च वा" [उणा० ९१५.] इति मनि सामन्, वेगः "सात्मन्" [उणा० ९१६.] इति मनि आत्वाभावे च वेमन्, "तत्र साधौ" [७.१.१५.] इति ये पदत्वा(भावा)नलोपाभावे सामन्यः, वेमन्यः । अनुवाई :- “ते. २%ने छ छ” से अर्थमा “राजन्" श ने "अमाव्ययात् क्यन् च" (3/ ४/२3) सूत्रथा. 'क्यन्' थतां तेम४ मा सूत्रथा ५४संशा यता तेम४ (४/3/११२)थी ई थतi "राजीयति" ३५ सिद्ध थाय छे. "राजा इव आचरति" ॥ अर्थमा "राजन्" २०४ने "क्यङ्" (3/४/२६) सूत्रथ.. "क्यङ्" थतi तथा ॥ सूत्रथा ५६॥ यतi "राजन्"नi "न्"नो दो५ थाय छे. पछी "दीर्घश्च्चि-यङ्-यक्-क्येषु च" (४/3/१०८) सूत्रथी पूर्वनो "अ" ही थतां "राजायते" ३५ सिद्ध थाय छे. "अचर्म चर्म भवति" ॥ अर्थमा “चर्मन्" शने "डाउलोहितादिभ्यः षिद्” (3/४/30) सूत्रथी. "क्यङ्" थतां अने म॥ सूत्रथा ५४संशा थतi "चर्मन्" २०४i "न"नो तो५. थाय छे. हवे. (४/3/१०८)थी "अ"-. हाधविधि थतi "चायति" भने “चर्मायते" प्रयोगोनी सिद्धि थाय छे. "अर्थन " अथवा तो "अर्थ नाव उपाय छसे अर्थमा “दिद्युद् ददृद् जगत्... क्विप्" (५/२/८3) सूत्रथ. "क्विप्" प्रत्यय थdi "वाच्" निपातन. ४२॥य छे. तथा "वाचम् इच्छति" में प्रभारी ४२७। अर्थमा "क्यन्" प्रत्यय थतi तथा ॥ सूत्रथा ५४संशानो समाप थत "वाच्यति" ३५ सिद्ध थाय छे. ५४संशानो अभाव थयो भाटे "चजः कगम्" (२/१/८६) सूत्रथी “च्"नो "क" थयो नथी. "षोंच अन्तकर्मणि" ॥ "सो" पातु “समाप्त ७२." अर्थवाणो योथा नो छ. सही "स्यतेरी च वा" (उणादि० - ८१५)था “मन्" प्रत्यय यतi "सामन्" २०६ थाय छे. तथा "वे" पातुने "सात्मन्..." (उणादि० - ८१६)थी "मन्" प्रत्यय यया पाह "आत्व"नो समाप थय। पाह "वेमन्" २०६ थायछ. ४वे "सामनि साधु" तथा "वेमनि साधु" से प्रभायो “साधु" अर्थमा "तत्र साधौ" (७/१/१५) सूत्रथा "य" थतां मने (१/१/२१) सूत्रथ. ५४नो अभाव थत बनेन "न्"नो सो५ थती नथी. तेथी "सामान्यः" भने "वेमन्यः" ३५ सिद्ध थाय छे. (शन्या०) अन्तर्वतिन्या विभक्त्या "तदन्तं पदम्" [१.१.२०.] इति पदत्वं प्राप्तम्, तत् 'सिति' (सित्येव) इति नियमेनापोदितमपि 'व्यञ्जने' इति पुनः प्रसूतम्, तदपि 'अयि' इति प्रतिषेधेन प्रतिषिद्धमनेन प्रतिप्रसूयते ॥२२॥

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