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पश्चात्ताप न कर | मेरे वचनों के अनुसार कार्य करने से कभी अशुभ नहीं होता | योग्य वैद्यकी योजनानुसार उपचार करने पर व्याधि कभी भी बाधा नहीं कर सकती । हे राजन् ! तूं यह न समझ कि, मेरा राज्य मुफ्त में चला गया। अभी तूं बहुत समय तक सुखपूर्वक राज्य भोगेगा । "
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ज्योतिषीकी भांति तोके ऐसे वचन सुनकर मृगध्वजराजा अपना राज्य पुनः पाने की आशा करने लगा । इतने ही में बनमें लगी हुई अग्नि के समान चारों तरफ फैलती हुई चतुरंगिणी सेना तितर-बितर आती देख भयसे मनमें विचार करने लगा कि - " जिसने मुझे इतनी देर तक दीनता उत्पन्न करी वही यह शत्रुकी सेना मुझे यहां आया जानकर निश्चय ही मेरा वध करनेके लिये दौडती आ रही है। अब मैं अकेला इस स्त्रीकी रक्षा कैसे करूं ? व इनसे किस तरह लहूं ? इस तरह विचार करते राजा 'किंकर्तव्यविमूढ' हो गया। इतनेमें " हे स्वामिन ! जीते रहो, विजयी होवो, आपके सेवकोंको आज्ञा दो । महाराज ! जिस प्रकार गया हुआ धन वापस मिलता है वैसे ही पुनः आज आपके दर्शन हुए। बालक के समान इन सेवकोंकी ओर प्रेम दृष्टि से देखो। " इत्यादि वचन बोलनेवाली अपनी सेनाको देखकर मृगध्वज राजाको बडा आश्चर्य हुआ । पश्चात् हर्षित होकर राजानें सैनिकोंसे पूछा कि, "तुम यहां किस प्रकार आये ? " सैनिकोंने उत्तर दिया कि, " हे प्रभो ! यहां पधारे