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विषय-सूची
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पृष्ठ ७ निबन्धन अनुयोगद्वार १-१४ ८ प्रक्रम अनुयोगद्वार
१४-४० वीरसेन स्वामीकृत मंगलाचरण
१ नामादि निक्षेपों द्वारा प्रक्रमकी प्ररूपणा भगवन्त भूतबली भट्टारक द्वारा विरचित प्रकृत एक प्रकारके कर्मको बांधकर फिर उसे आठ सूत्रको देशामर्शक मानकर उसके द्वारा सूचित
प्रकारके करने विषयक आशंका और उसका शेष निबन्धन आदि १८ अनुयोगद्वारोंके रचनेकी
समाधान वीरसेनाचार्य की सूचना
सांख्योंके द्वारा माने गये सत्कार्यवादका निबन्धन अनुयोगद्वारका निरुक्त्यर्थ बतला कर
निरूपण उसकी नामादि निक्षेपोंके द्वारा प्ररूपणा
नैयायिक आदिके द्वारा माने गये असत्कार्यवाद निबन्धन अनुयोगद्वार यद्यपि छहों द्रव्योंके निब
का निराकरण न्धनकी प्ररूपणा करता है फिर भी उसे छोड
सत्-असत् एवं अनुभय स्वरूप कार्यकी उत्पत्तिका कर यहाँ केवल कर्मनिबन्धनके ही ग्रहण
निराकरण करके ' स्यात् सत् कार्य ' उत्पन्न करनेकी सूचना
होता है, इत्यादि सात भंगोंका उल्लेख और ज्ञानावरण और दर्शनावरणके निबन्धनकी
उनका पृथक् विवरण
क्षणिक एकान्त पक्षमें परलोक आदिकी असप्ररूपणा
म्भावना प्रगट कर द्रव्यकी उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यवेदनीयके निबन्धनकी प्ररूपणा
स्वरूपताकी सिद्धि मोहनीयके
भावैकान्तमें दोषापादन आयके , "
अभावैकान्तमें दोषापादन नामकर्मके
नयविवक्षासे कथंचित सत, असत व उभय गोत्रकर्मके
आदि स्वरूपताकी सिद्धि अन्तरायके
मूर्त कर्मोका अमूर्त जीवके साथ बन्धविषयक ज्ञानावरणकी ५ उत्तर प्रकृतियोंके निबन्धन
शंका और उसका समाधान की प्ररूपणा
" | प्रक्रमके ३ भेदोंका निर्देश करके मूलप्रकृति दर्शनावरणकी ९ उत्तर प्रकृतियोंके निबन्धन प्रक्रमका विवरण की प्ररूपणा
| उत्कृष्ट उत्तर प्रकृतिप्रक्रमका विवरण साता और असाता वेदनीयके निबन्धनको जघन्य प्रकृतिप्रक्रमका विवरण प्ररूपणा
११ स्थिति और अनुभाग प्रक्रमका निरूपण दर्शन और चारित्रमोहनीयके निबन्धनकी
९ उपक्रम अनुयोगद्वार ४१-२८४ प्ररूपणा
११ | उपक्रमके भेद-प्रभेद और उनका लक्षण आयुचतुष्कके निबन्धनकी प्ररूपणा
१२ | एक-एकप्रकृति उदीरणा विषयक स्वामित्व ४४ नामप्रकृतियोंके निबन्धनकी प्ररूपणा १२ एक जीवकी अपेक्षा काल नीच व ऊंच गोत्र तथा ५ अन्तराय प्रकृतियों
अन्तर के निबन्धनकी प्ररूपणा
१४ | नाना जीवोंकी अपेक्षा भंगविचय आदि
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