Book Title: Savruttik Aagam Sootraani 1 Part 32 Oghniryukti Mool evam Vrutti
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Vardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
View full book text
________________
आगम (४१/१)
[भाग-३२] “ओघनियुक्ति”- मूलसूत्र-२/१ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:)
मूलं [९३३] .→ “नियुक्ति : [५९९] + भाष्यं [३०६...] + प्रक्षेपं [२७... . पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[४१/१] मूलसूत्र-२/१ ओघनियुक्ति मूलं एवं द्रोणाचार्य-विरचिता वृत्ति:
प्रत गाथांक नि/भा/प्र ||५९९||
दीप अनुक्रम [९३३]
श्रीओष-18| रियाणं पडिग्गहर्ग दाउं काइयभूमि वच्चा जाव आयरियाणपि तत्तोहुत्तो भावो हीरइ, ताहे सो सीसो आगंतुं आलोएइ जातापारिनियुक्ति आयरिया भणंति-ममवि अत्थि भावो, ते एत्थं संजोगचुण्णेण कओ पिंडो अस्थि, ताहे परिठविजइ, जो विही परिछावणे छापनिका द्रोणीयासो उपरि भणिहिति । एवमेव विसकयंपि, एगा अगारी साहुणो अज्झोववण्णा, सो य नेच्छइ, ताहे रुहाए विसेण मिस्सा नि. वृत्तिः भिक्खा दिग्णा, तस्स य दिण्णमेत्तेणं चेव सिरोवेयणा जाया, पडिणियत्तो य गुरुणो समप्पेऊण काइयं वोसिरह जाव/५९८-६०४ ॥१९॥
गुरुणोवि सीसवेयणा जाया, तं च गुरुणा गंधेण णायं जहा इमं विसमिस, अहवा तत्थ लवणकया भिक्खा पडिया ताहे शतं विसं उप्पिसति, एवं नाए विहीए परिदृविजति सा य भणीहामि । इदानीममुमेवार्थं गाथाभिरुपसंहरनाह
जोगंमि उ अविरइया अमुववन्ना सरूवभिक्खुमि | कडजोगमणिच्छंतस्स देह भिक्खं असुभभावे ॥३०॥ संकाए स नियट्टो दाऊण गुरुस्स काइयं निसिरे । तेसिपि असुभभावो पच्छा उ ममापि उज्झयणा ॥१०॥ एमेव विसकर्यमिबि दाऊण गुरुस्स काइयं निसिरे । गंधाई विनाए उज्झगमविही सियालबहे ।। ६०२॥
एवं विजाजोए विससंजुत्तस्स वावि गहियस्स । पाणचएवि नियमुज्झणा उ चोच्छ परिवणं । ६०३ ॥ टाएगतमणावाए अचिसे थंडिले गुरुवाइढे । छारेण अकमित्ता तिढाणं सावर्ण कुजा ॥ ६०४ ॥ जोगे अविरइया-गृहस्थी दृष्टान्तः, अज्झोववण्णा सरूपे भिक्षौ, अनिच्छतस्तत्कर्म कर्तुं कृतयोगो भिक्षापिण्डो दत्ता,
॥१९॥ पुनश्च तस्य साधोग्रहणानन्तरमेवाशुभभावो जातः-तदभिमुखं चित्तमिति । तया च 'शङ्कया' योगकृतभिक्षाशङ्कया स निवृत्तो भिक्षापरिश्रमणात् । शेष सुगमम् ॥ एवमेव विषकृतेऽपि दृष्टान्तः, गुरोः 'दत्वा' समर्पयित्वा कायिका व्युत्स-1
Biratna
~399~

Page Navigation
1 ... 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472