Book Title: Savruttik Aagam Sootraani 1 Part 32 Oghniryukti Mool evam Vrutti
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Vardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana

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Page 423
________________ आगम (४१/१) [भाग-३२] “ओघनियुक्ति”- मूलसूत्र-२/१ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:) मूलं [९९९] → “नियुक्ति: [६५९] + भाष्यं [३११] + प्रक्षेपं [२७... . पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[४१/१] मूलसूत्र-[२/१ ओघनियुक्ति मूलं एवं द्रोणाचार्य-विरचिता वृत्ति: सोय प्रत गाथांक नि/भा/प्र ||३११|| साडू उद्वेइ, सोवि ततिए मंडलए तिष्णि चारा लेइ, लिंतस्स जदि न सुज्झति ताहे भग्गो कालो, एत्य लंताण साहूण कालग्रहण नियुक्ति नव धारावसाणे पभा फुट्टति, ततो तीए वेलाए पडिकमन्ति, अह तिण्णि कालगाहिणो नस्थि किंतु दुवे चेव, ततो इको विधिः द्रोणीया पढम पढमकालमंडलए तिषिण वारा उ लेऊण ततो बितिए दो वारे गिण्हइ, ततो वितिओ साहू पीयए चेय कालमंड- नि.६६० वृत्ति दूलए एक वारं लेऊण ततो तइए मंडले तिन्नि वारातो गेण्हइ, एवं चेव नव वारा हवंति, अहषा पढमे व कालमंडलए भा. ३११ ॥२०६॥ एगो चत्तारि वाराओ लेइ, वितिओ पुण बितिए कालमंडलए दो वाराओ लेइ, ततिए तिनि वाराउ लेइ सो चेव बितिओ, एवं था दोण्हं साहूर्ण नव वाराओ भवंति, अह एको चेव कालग्गाही ततो अववाएण सो चेव पढमे तिन्नि वारा लेइ, पुणो सो चेव बितिए मंडले तिमि वारा लेइ, पुणो सो चेव ततिए मंडलए तिन्नि चेव वाराओ लेइ । एसो पाभाइका लस्स विही । एवं च सति कालस्स पडिकमिता सुवंति, एगो न पडिकमति, सो अववाएण काल निवेदिस्सइ ॥ इदानीं हायधुकं “वासासु य तिपिण दिस"ति तयाण्यानयनाह वासासु यतिपिण दिसा हवंति पाभाइयम्मि कालंमि।सेसेसुतीसुचउरो उमि चउरोचउदिसंपि॥३१॥(भा०) है। वर्षासु तिम्रो दिशो यदि कुब्यादिभिस्तिरोहिता न भवन्ति ततः प्राभातिककालग्रहणं क्रियते, शेषेषु त्रिषु कालेषु चत खोऽपि दिशो यदि कुब्यादिभिस्तिरोहिता न भवन्ति ततो गृह्यन्ते काला-1, नान्यथा, 'उमिचउरो पदिसंपि'ति|२०६॥ ऋतुबड़े काले चत्वारोऽपि काला गृह्यन्से यदि चतस्रोऽपिदिशोऽतिरोहिता भवन्ति नान्यथा, पततुकं भवति-पतसष्यपि दिशु यद्यालोको भवति ततश्चत्वारोऽपि काला गृहमन्ते। इदानीम् “उउबद्धे तारका तिपिण"ति व्याख्यायो दीप अनुक्रम [९९९] ~423~

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