Book Title: Savruttik Aagam Sootraani 1 Part 32 Oghniryukti Mool evam Vrutti
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Vardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
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आगम
(४१ / १)
प्रत गाथांक
नि/भा/प्र
||६५९||
दीप
अनुक्रम
[९९७]
[भाग-३२] “ओघनिर्युक्ति” - मूलसूत्र - २/१ ( मूलं + निर्युक्तिः+वृत्तिः)
मूलं [ ९९७] •
"निर्युक्तिः [६५९ ] + भाष्यं [ ३१० ] + प्रक्षेपं [२७...]"
८०
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.. आगमसूत्र - [४१ / १] मूलसूत्र- [ २/१ ओघनिर्युक्ति मूलं एवं द्रोणाचार्य विरचिता वृत्तिः
कनकाः नन्ति कालं त्रयः पक्ष सप्त यथासत्येन 'प्रिंसिसिरवासे' ग्रीष्मकाले श्रयः कनकाः काले व्याघ्नन्ति शिशिरकाले पञ्च नन्ति काल वर्षाकाले सप्त नन्ति कालम् । इदानीमुल्काकनकयोर्लक्षणं प्रतिपादयन्नाह - उल्का सरेखा भवति, पतदुक्तं भवति - निपततो ज्योतिष्पिण्डस्य रेखायुक्तस्य उल्केत्याख्या, स एव च रेखारहितो ज्योतिष्पिण्डः कनकोऽभिधीयते । सवेवि पदमजा मे दोन्नि उ वसभा उ आइमा जामा । तइओ होइ गुरूणं चउत्थओ होइ ससिं ॥ ६६० ॥
तस्मिंश्च प्रादोषिके काले गृहीते सति सर्व एव साधवः प्रथमयामं यावत्स्वाध्यायं कुर्वन्ति, द्वौ त्वायो यामी वृषभाणां भवतो गीतार्थानां ते हि सूत्रार्थे चिन्तयंतस्तावत्तिष्ठन्ति यावत्प्रहरद्वयमतिक्रान्तं भवति, तृतीया च पौरुष्यवतरति, ततस्ते चैव कालं गृह्णन्ति अनुरत्तियं, उवज्झायाणं संदिसावेत्ता ततो कालं घेत्तृणं आयरियं उडवेंति, वंदणयं दाऊण भणन्ति-सुद्धो कालो, आयरिया भणति-तहत्ति, पच्छा ते वसभा सुर्यति, आयरिओवि बितियं उडावेत्ता कालं पडिय रावेर, ताहे एगचित्तो सुत्तस्थं चिंतेइ जाव वेरत्तियस्स कालस्स बहुदेसकालो, ताहे तइयपहरे अतिकंते सो कालपडिलेगो आयरियस्स पडिसंदेसावेत्ता वेरत्तियं कालं गेण्हइ, आयरिओवि कालस्स पडिकमित्ता सोवति, ताहे जे सोइयहया साहू आसी ते उद्देऊण वेरत्तियं सज्झायं करेंति जाव पाभाइयकालगहणवेला जाया, ततो एगो साहू उवज्झायस्स वा अण्णस्स वा संदिसावेत्ता पाभाइयं कालं गेण्हर, जहा नवहं कालगहणाणं वेला पहुच्चति सम्झाए आरतो चैव पुणो ताहे साहुणो सबै उट्ठेति, किह पुण नव काला पडिलेहिअंति, पढमो उवडिओ कालग्गाहो तस्स तिनि वारा कालो उवहओ एकमि मंडलए, तओ पुणो बितिओ उट्ठेइ सो बितिए मंडलए तिनि वारा छेइ, लिंतस्स जदि न सुज्झति ततो तइओ
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~422~
[retary or

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