Book Title: Savruttik Aagam Sootraani 1 Part 32 Oghniryukti Mool evam Vrutti
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Vardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
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आगम (४१/१)
[भाग-३२] “ओघनियुक्ति”- मूलसूत्र-२/१ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:)
मूलं [९३१] .→ “नियुक्ति: [५९७] + भाष्यं [३०६...] + प्रक्षेपं [२७... .. पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[४१/१] मूलसूत्र-[२/१ ओघनियुक्ति मूलं एवं द्रोणाचार्य-विरचिता वृत्ति:
प्रत
गाथांक नि/भा/प्र ||५९७||
सच परिष्ठापनीय इति । अत्र चागार्या दृष्टान्तः, एगा अविरइया सा अणिवा पतिणो, ताए परिधाइया अभत्थिया। जहा किंचि मंतेण अहिमंतऊण मे देहि जेण पई मे वसे होइ, ताहे ताए अभिमंतेऊण कूरो दिण्णो, अविरइयाए चिंतियं, मा एसो दिण्णण मरिज्ला ततो ताए अणुकंपाए उकुरुडियाए छड्डिओ, सो गद्दहेण खइओ, सो रत्तिं घरदारं खोडेउमारतो, ताणि णिग्गयाणि जाव पेच्छति गद्दहेण खोहिजतं, सो अविरओ भणइ-किं एयंति ?, ताए सम्भावो कहिओ, तेणवि |सा परिवाइगा दंडाविआ, एस दोसो। एवं जदि तिरियाण एरिसा अवस्था होइ माणुसस्स पुण सुट्टयर होइ, अओ, 17 एरिसो पिंडोन घेत्तघो । अमुमेवाथै गाथाभिरुपसंहरन्नाहविजाए होअगारी अचियत्ता साय पुच्छए चरिजाअभिमंतणोदणस्स उ अणुकंपणमुज्झणं च खरे॥५९८॥ बारस्स पिट्टणंमि अ पुच्छण कहणं च होअगारीए। सिढे चरियादंडो एवं दोसा इहंपि सिया ॥ ५९९ ॥
विद्याभिमन्त्रिते पिण्डेऽगारी दृष्टान्तः, सा च भर्तुरचियत्ता-न रोचते, सा च चरिकां-परिव्राजिकां पृच्छति पत्युर्व-18 शीकरणार्थ, तयाऽप्यभिमन्त्रणमोदनस्य कृत्वा दत्तं, तयाऽपि अगार्या पत्युमरणानुकम्पया न दत्तं, 'उज्झन' परित्यागः कृतः, स चोज्झितः खरेण भक्षित इति । स च गर्दभ आगत्य द्वार पिट्टयति मन्त्रवशीकृतः सन् , शेषं सुगमम् । एवं भावा-12 भियोगदृष्टान्त उक्तः, इदानीं द्रव्याभियोगचूर्ण वशीकरणपिण्ड उच्यते-एगा अविरइया, सा य सरुवस्स भिक्खुणो अज्झो-18 |वण्णा अणुरत्ता, ताहे सा तं पेच्छति अणिच्छंतस्स चुण्णाभिओगेण संजोएडं भिक्खं पाडिवेसिअघरे काऊण दवावि ताहे जत्थेव तस्स साहुस्स पडिग्गहगे पडिअंतत्थेव तस्स साहुस्स तओ मणो हीरइ, तेण य नायं ताहे नियत्तइ, आय-17
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दीप
अनुक्रम [९३१]
StosOSANS
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