Book Title: Satya Dipak ki Jwalant Jyot
Author(s): Kiranyashashreeji
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 20
________________ रही हैं-प्रमुख रूपसे न्याय विषयक मार्गदर्शन प्रदाता श्रीमद्विजय राजयश सूरि म.सा., आगमादिके संदर्भ विषयक मार्गदर्शक श्रीमद्विजय शीलचंद्र सूरि म.सा., काव्य विषयक मार्गदर्शक उपा.श्री यशोभद्र विजयजी म.सा.योगीराज श्री चंद्रोदय विजयजी म.सा. आदिके ऋणको कैसे चूका सकती हूँ ? इस शोधकार्यमें जिनकी पावन उष्मापूर्ण निश्रा प्राप्त हुई वे परम श्रद्धेय प्रवर्तिनी श्री विनिताश्रीजी म.सा., एवं इस शोध प्रबन्धके लिए अनुज्ञा प्रदात्री परमोपकारी गुरुणी श्री यशकीर्तिश्रीजीम.सा., और अन्य सभी बड़े-छोटे सहवर्तिनी साध्वीजी महाराजोंके असीम वात्सल्य और स्नेहपूर्ण सर्वांगीण सहयोगको कभी भी भूलाया नहीं जा सकताः तो अपने अक्षर देहसे-परोक्ष प्रोत्साहन प्रदात्री श्रीसुवर्ण प्रभाश्रीजीम. श्रीभद्रयशाश्रीजी म., श्री राजयशाश्रीजी म., श्री सौम्य प्रभाश्रीजी म., श्री तीर्थरत्ना श्रीजीम. आदिको भी कैसे भूला सकती हूँ ? गुरुकुलके इन सर्व हितैषी जनोंके निःस्वार्थभावी, उदारदिल, अनुग्रहको मूकतासे अंतःकरण पूर्वक अंगीकृत करते हुए उनके पुनित पादारविंदमें नतमस्तक होती हूँ । इस शोध प्रबन्धमें प्राण भरनेवाली-सरलाश्रयी, प्रमुख सहायिका-सर्वदा, सर्व प्रकारके सहयोगमें तत्पर, उदारचित्त राहबर, प्रबुद्ध प्रेरणादात्री डॉ.कु.प्रेमलताजी बाफना (रीड़र, हिन्दी विभाग, कलासंकाय, म.स.विश्वविद्यालयबड़ौदा)के कुशल दिग्ददर्शन एवं सूक्ष्मैक्षिक निर्देशनान्तर्गत यह शोधकार्य अभियान अति सुचारुपूर्ण एवं सुव्यवस्थित रूपसे गंतव्यको प्राप्त कर सका है । अतः उनके मुखरित ऋणको भी हार्दिक धन्यवादके साथ स्वीकार करती हूँ: तो गौण रूपसे सहयोगी बननेवाले डॉ.अरुणोदय जानी (जिन्होंने तर्क संग्रहादि न्याय विषयक अध्यापनके साथ आचार्य प्रवरश्रीके ग्रन्थोंमें उनके प्रयोगोंको स्पष्ट करनेमें उदात्त योगदान दिया); मेरे भूतपूर्व सहाध्यायी डॉ. रजनीकान्त शाह (जिन्होंने अनेक बार साहित्यिक परामर्श दिये); (मेरे गृहस्थ जीवनके)भाईश्री दिनेश-नयनाबेन, गौतम एवं बहन जयदेवीके योगदानको भी याद कर लेना अनुचित न होगा। इस शोध प्रबन्धके चित्रकला कार्यमें योग प्रदात्री कु.जयदेवी एवं ज्योतिष विषयक परिपूर्ण मार्गदर्शक-दिग्दर्शक-निर्देशक तथा कॉम्प्युटर टाइपिंग और प्रफशोधनादि अनेक प्रकारसे हार्दिक लागणी युक्त एकनिष्ठ सहायक श्री गौतमकुमारकी सहायतासे इस शोध प्रबन्धमें वैविध्यता एवं निखार लाया जा सका है, अतः उनका अंतःकरणसे हार्दिक धन्यवाद करती हूँ । इस शोध प्रबन्धमें उपयुक्त बहुविध-बहुमूल्य-विशद वाङ्मय-समसामायिक पत्रिकायें, शताब्दी ग्रन्थ, अन्य शोध प्रबन्ध-ग्रन्थ, विभिन्न विषयक भिन्नभिन्न भाषाभाषी साहित्यिक रचनाओंके प्रणेता महामनीषियों, प्राज्ञपुरुषों एवं विलक्षण व्यक्तित्वधारियोंके परमोपकारको दृष्टिसमक्ष रखते हुए उनके पावन चरण सरोजोमें श्रद्धावनत होती हूँ तो पूर्वाचार्योंके विलक्षण वाङ्मय एवं आगमिक साहित्यके अवलंबनके लिए उन सभी उदात्त चरित्र प्रातिभ पुरुषोंके ऋणको कैसे चूका सकती हूँ ? केवल नतमस्तक होकर अभिवादन ही करती हूँ और उस अमूल्य निधिको संचितकर्ता-संग्राहक श्री वल्लभ स्मारक शिक्षण निधि, दिल्ही; श्री आत्मानंद जैन सभा-भावननगर: श्री आत्मानंद जैन सभा-अंबाला: जंबूसर ज्ञान भंडार; श्री हंस विजयजी ज्ञानमंदिर-बड़ौदा: श्री महावीर जैन विद्यालय बड़ौदा, श्री हंसा महेता लायब्रेरी, ओरिएन्टल लायब्रेरी: अहमदाबाद-बॉम्बे-खंभातादि अनेक ज्ञानभंडार एवं पुस्तकालयोंसे संदर्भ ग्रन्थ-सहायक पुस्तकें प्राप्त करवानेवाले उनके सभी व्यवस्थापक महानुभावोंके उपकारको भी याद करना अपना कर्तव्य समझती हूँ । इसके अतिरिक्त जिन्होंने इस शोध प्रबन्धके टाइपिंग हेतु आर्थिक सहयोग दिया-श्री महिला जैन उपाश्रय, जानीशेरी, बड़ौदाके प्रमुख कार्यकी श्रीमति चंपाबेन, श्रीमति सुशीलाबेन, श्रीमति सुधाबेन आदि; टाईपराइटर, 'श्री कॉपी सेन्टर' वाले श्री विपुलभाई और अन्य सहयोगी बिपिनभाई आदि सभीके प्रति भी धन्यवाद प्रेषित करती हूँ । अंततः इस शोध प्रबन्धके नामी-अनामी, प्रत्यक्ष-परोक्ष, जाने-अनजाने सभी सहकारी-सहयोगी, जिन्होंने सबल संबल बनकर मेरी भावनैयाको किनारा प्राप्त करवाया है उन सभीके मुखरित ऋणको मूकपने ग्रहण करते हुए आभार प्रकट करती हूँ । मेरी अंतराभिलाषा :---जनजनके हृदयसिंहासन स्थित सम्राट, व्यक्ति केन्द्रित फिर भी समष्टि व्याप्त, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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