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नहीं हो सकता तथापि प्रश्नकर्त्ता के प्रश्नोंके सप्त ही भेद हो सकते हैं. इसी हेतु भङ्ग अर्थात् वाक्य भी सात ही हो सकते हैं. इस नियमके सूचनार्थ सत्यन्तदल लक्षणमें नियत किया है. क्योंकि उत्तरदाता प्रश्नकर्त्ताके प्रश्नोंको जानकर उसके बोधार्थ वाक्यप्रयोग करता है. अतएव सप्तभङ्ग प्रश्नकर्त्ताके प्रश्न ज्ञानके प्रयोज्य अवश्य हुये । शङ्का - प्रश्नोंके संप्त भेद क्योंकर हो सकते हैं ? यदि ऐसी शङ्का करो तो उत्तर यह है कि - प्रश्नकर्त्ता जानने की इच्छाओंके सात ही भेद हो सकते हैं क्योंकि प्रश्न कर्त्ता में जो किसी पदार्थकी जाननेकी इच्छा है उस इच्छाके प्रेतिपादक जो वाक्य हैं उनको ही प्रश्न कहते हैं क्योंकि गो पदार्थको न जाननेवाला पुरुष गौके जानने की इच्छा से किसी पुरुषसे प्रश्न करता है कि 'गोपदवाच्यं किम् ' तब वह उत्तर देता है “सास्नालाङ्गूलककुत्खुरविषाणाद्यर्थविशिष्टो गौः " साना अर्थात् जो गलेमें स्थित रोम मांस समूहरूप कम्बल कैकुद, खुर तथा विषाण इत्यादि पदार्थ विशिष्ट गो होता है. 'कः गौः ' इस प्रश्नसे गौको न जाननेवाले पुरुषकी उस पदार्थके जानने की इच्छाहीसे वक्ता उत्तर देता है. क्योंकि जिस पदार्थके जाननेकी इच्छा नहीं है उसको बोधन कराना अयोग्य है. उस पुरुषके जानने की इच्छा वक्ताको अर्थात् उत्तरदाताको उसके प्रश्नसे ज्ञात होती है. इसी कारणसे प्रश्नकर्त्ताका प्रश्न ही जिज्ञासाका प्रतिपादक वाक्य है और वह उत्तरदाता के ज्ञानका जनक है कि अमुक प्रश्नकर्ता अमुक पदार्थ जानना चाहता है, उसीके अनुसार वह उत्तरदानमें प्रवृत्त होता है |
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ननु सप्तचैव जिज्ञासा कुतः इति चेत्, सप्तधा संशयानामुत्पत्तेः । संशयानां सप्तविधत्वन्तु तद्विषयीभूतधर्माणां सप्तविधत्वात् । तादृशधर्माश्च कथञ्चित्सत्त्वं कथञ्चिदसत्त्वं, क्रमा र्पितोभयं, अवक्तव्यत्वं कथञ्चित्सत्त्वविशिष्टावक्तव्यत्वं कथञ्चिदसत्त्वशिष्टावक्तव्यत्वम्, क्रमार्पितोभयविशिष्टावक्तव्यत्वम्, चेति सप्तैव । एवं च दर्शितधर्मविषयकाः सप्तैव संशयाः । अत्र घटः स्यादस्त्येव वा नवेति कथञ्चित्सत्त्वतद्भावकोटिकः प्रथमसंशयः ।
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अब कदाचित् यह कहो कि संप्त ही प्रकारकी जाननेकी इच्छा क्यों होती है ? तो इसका उत्तर यह है कि, - संशयोंके भेद भी सात ही प्रकार के होते हैं और संशयोंके सात प्रकारके होनेका कारण यह है कि संशयोंके विषयीभूत धर्मोंके भेद सप्त ही प्रकारके हैं । उस प्रकारके धर्म कथंचित् सत्त्व १ कथंचित् असत्त्व २ कथंचित् क्रमसे समर्पित सत्त्व असत्त्व उभयरूप ३ कथंचिंतूं अवक्तव्य ४ कथंचित् सत्त्वविशिष्ट अवक्तव्य ५ कथंचित् असत्त्व विशिष्ट अवक्तव्यत्व ६ कथंचित् क्रमसे समर्पित सत्त्व और असत्त्व एतदुभय विशिष्ट अवक्तव्यत्व ७ ये सात हैं. इस प्रकार पूर्वप्रदर्शित सत्त्व आदि विषयक सात ही संशय हो सकते हैं ।
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१ सात. २ कहनेवाले. ३ गौ किसको कहते हैं. ४ गर्दन के समीप पीठपर उच्च शरीरका अवयव. ५ सफ. ६ शृङ्ग ७ गौ क्या है. ८ जानने की इच्छाका. ९ सात. १० किसी विवक्षा वा अपेक्षासे. ११ पहिले दर्शाये हुये.