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है इत्यादि प्रयोगोंमें भूतलनिष्ठ जो अभाव उसका प्रतियोगी घट ऐसा शाब्दबोध होता है । तात्पर्य यह है कि 'भूतले घटोऽस्ति' इत्यादिमें सत्त्व वृत्तिता सम्बन्धसे घटमें अन्वित है। और 'भूतले घटो नास्ति' यहां अभावका प्रतियोगिता सम्बन्धसे घटमें अन्वय है । इस प्रकार सत्त्व तथा असत्त्वका स्वरूपभेद पूर्ण रूपसे है। ___ अपि च-ये त्रिरूपं हेतुमिच्छन्ति सौगतादयः । ये वा पञ्चरूपमिच्छन्ति नैयायिकादयः, तेषामुभयेषामपि हेतोस्सपक्षसत्त्वापेक्षया विपक्षासत्त्वं भिन्नमेवाभिमतं; अन्यथा स्वाभिमतस्य त्रिरूपत्वस्य पञ्चरूपत्वस्य वा व्याघातात् इति ।
और भी जो हेतुकी त्रिरूपता बौद्धमतावलम्बी मानते हैं और जो नैयायिक पञ्चरूपता मानते हैं उन दोनोंकोभी हेतुकी सपक्षमें सत्त्वकी अपेक्षासे विपक्षमें असत्त्व भिन्नही अभीष्ट है । यदि ऐसा न माने तो अपने २ मतमें स्वीकृत त्रिरूपता तथा पंचरूपताकी हानि होगी। पक्षधर्मता, सपक्षे सत्त्व, विपक्षे असत्त्व, ये तीन हेतुरूप बौद्धमतानुयायी मानते हैं। जैसे 'पर्वतो वहिमान् धृमात्' धूमदर्शनसे ज्ञात होता है कि पर्वतमें अग्नि है। 'धृमात्' यह पञ्चम्यन्त पद हेतु है उसकी पक्षधर्मता है. सैपक्ष महानसमेंभी धूमका सत्त्व है। और विपक्ष जलद आदिमें धूमका असत्त्वभी है । और नैयायिक तीन ऊपर कहेहुयेसे अधिक अबाधित विषयता तथा असत् प्रतिपक्षता ये दो रूप हेतुके और मानते हैं । इनमेंसे साध्यसे विपरीत निश्चय करानेवाले प्रबल प्रमाणका अभाव जो है उसको अबाधित विषय कहते हैं । जैसे पर्वतमें साध्यभूत अमिके विपरीत निश्चय करानेवाला प्रबल प्रमाण प्रत्यक्ष नहीं हैं. क्योंकि धूम देखनेके पश्चात् यदि पर्वतमें जाओ तो अग्नि अवश्य मिलेगी। इससे धूमरूप हेतुका विषय |बल प्रमाणसे बाधित नहीं है । इस लिये यह हेतु अबाधित विषय है।
और उसी प्रकार साध्यसे विपरीत निश्चय करानेवाले समबल प्रमाणकी शून्यता जिस हेतुको हो उसको असत्प्रतिपक्ष हेतु कहते हैं । अर्थात् जिसके साध्यसे विरुद्ध साध्य सिद्ध करनेवाला प्रतिद्वन्द्वी हेतु न हो सो यहां पर्वतमें अमिसे विरुद्ध अमिके अभावका साधक कोई अनुमानादि प्रमाण नहीं है इस कारण धूमरूप हेतु असत्प्रतिपक्षी है। इन दोनो अर्थात् बौद्ध और नैयायिकको अभीष्ट संपक्ष सत्त्व तथा विपक्षासत्त्वरूप हेतुके दूसरे तथा तीसरे अङ्गमें यदि सपक्षसत्त्वकी अपेक्षा विपक्षमें असत्त्वको भिन्न न मानेंगे अर्थात् सत्त्वअसत्त्वको एकरूपही मानेंगे तो बौद्धका अभीष्ट हेतुकी त्रिरूपता और नैयायिकको अभीष्ट पञ्चरूपता सिद्ध नहीं होगी क्योंकि सत्त्व असत्त्व एक मानेसे एकमें दूसरा गतार्थ होनेसे एक अङ्ग जाता रहेगा. इस लिये उनके सिद्धान्तसेभी सत्त्व और असत्त्वका भेद सिद्ध हो गया ।।
१ भूतलपर रहनेवाला. २ पक्षरूप पर्वतमें वृत्तिरहना. ३ रसोईके घर. ४ तड़ाग आदि. ५ अग्निआदि. ६ अनुमानसे प्रबल. ७ प्रत्यक्ष. ८ धूम. ९ अनुमान वा आगम. १० समान पक्ष महानसआदिमें हेतुकी सत्ता और विपक्ष महा हृदादिमें हेतुकी असत्ता. ११ तीन रूपता.'
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