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विशिष्ट इस पदसे सत्त्व तथा असत्त्व, इन दोनों धर्मोंसे सहित वस्तुके बोध संभव है, इस रीतिसे अक्तव्यत्व भंग नहीं बन सकता। ऐसा नहीं कह सकते, क्योंकि सदसत्व विशिष्ट इस पदमें सत्त्व और असत्त्वके वैशिष्ट्यकी ही प्रधानता है, अर्थात् सत्त्व और असत्त्वसे सहित जो वस्तु है, उसीका प्रधानतासे बोध होता है, न कि सत्त्व और असत्व इन दोनों धर्मोंका, क्योंकि वे अप्रधान हैं, तत्पुरुष समासमें उत्तर पदार्थ प्रधान रहता है। ऐसा व्याकरण शास्त्रका बचन है । इस कारण सदसत्त्वका सर्वथा वाचक पद न होनेसे "स्यात् अक्तव्यश्च घटः” कथंचित् घट अवाच्य है, यह भङ्ग निर्विवाद सिद्ध है, । तच्च न सर्वथैवावक्तव्यम्, अवक्तव्यशब्देनास्य वक्तव्यत्वात् । अतस्स्यादवक्तव्यो घट इति चतुर्थभंगः । इति केचिद्व्याचक्षते । तत्रेदं चिन्त्यम् , अवक्तव्यशब्दस्याभिधेयं किमिति ।
वह अवक्तव्यरूप अर्थ भी सर्वथा ही अवाच्य नहीं है क्योंकि अवक्तव्य शब्दसे वह कहा जाता है, इसी कारणसे "स्याद् अवक्तव्यः घटः" यह चतुर्थ भङ्ग बनता है । ऐसा कोई कहते हैं, अब इस कथनके विषयमें यह विचारना चाहिये कि अवक्तव्य शब्दका वाच्यार्थ क्या है, अर्थात् इस अवक्तव्य शब्दसे क्या पदार्थ कहा जाता है ।
न च-प्रधानभूतसदसत्त्वरूपधर्मावच्छिन्नं वस्तु अवक्तव्यशब्देनाभिधीयत इति वाच्यम् ; तथा सति तस्य सकलवाचकरहितत्वक्षतेः, अवक्तव्यशब्दस्य तद्वाचकस्य सत्त्वात् , एकपदस्य प्रधानभूतानेकधर्मावच्छिन्नवस्तुबोधकत्वं नास्तीति नियमस्य भंगप्रसंगाच्च ।
कदाचित् यह कहो कि प्रधानता दशाको प्राप्त सत्त्व असत्त्व जो धर्म हैं। उन धर्मों करके सहित पदार्थ अवक्तव्य शब्दसे कहा जाता है, सो यह नहीं कह सकते, यदि ऐसा स्वीकार करोगे तो प्रधानभूत सदसत्त्वका एक कालमें कोई वाचक नहीं है किन्तु वह सकल वाचक शब्दसे रहित है, इसी नियमका भङ्ग होगा क्योंकि अवक्तव्य शब्द उसका वाचक विद्यमान है, और एक पद एक ही कालमें प्रधानभूत अनेक धर्म सहित वस्तुका बोधक नहीं है, इस नियमका भी भंग होगा,
किञ्च-यथाऽवक्तव्यमिति पदं सांकेतिकं तादृशोभयधर्मावच्छिन्नस्य वाचकं, तथा सांके. तिकमन्यदपि तद्वाचकं कुतो न भवति ?
और दूसरी एक बात यह भी है कि जैसे संकेत सिद्ध होनेसे अवक्तव्य यह शब्द सत्त्व असत्त्व उभय धर्मोंसे अवच्छिन्न वस्तुका वाचक है ऐसे ही संकेतसे सिद्ध अन्य शब्द भी इस अर्थका वाचक क्यों नहीं होता ?
ननु-अन्यस्य सांकेतिकपदस्य क्रमेणैतादृशधर्मावच्छिन्नवस्तुबोधकत्वमिति चेत्, अवक्तव्यपदस्यापि युगपत्तद्वाचकत्वं माभूत् । यथा-सांकेतिकपदान्तरेण सत्त्वासत्त्वादिधर्मावच्छिन्नं वस्तु क्रमेण प्रतीयते, तथाऽवक्तव्यपदेनापि, उभयोर्विशेषाभावात् । अवक्तव्यपदेन हि
१ सत्त्व असत्त्व इस उभय धर्म सहित पदार्थका कहनेवाला शब्द. २ इस शब्दसे अमुक अर्थका ज्ञान हो ऐसे संकेतसे सिद्ध शब्द.
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