Book Title: Saptabhangi Tarangini
Author(s): Vimaldas, Pandit Thakurprasad Sharma
Publisher: Nirnaysagar Yantralaya Mumbai

View full book text
Previous | Next

Page 92
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir है उसी रूपसे सत्त्व रहेगा नकि असत्त्व इस प्रकार व्यतिकर दोष है । परस्पर विषय गमनको व्यतिकर कहते हैं। ऐसा अन्यत्र वाक्य है । तथा एक ही वस्तु सत्त्व असत्त्व उभयरूप होनेसे यह ऐसा ही अर्थात् सत्त्वका असत्त्वरूप है, यह निश्चय करनेको अशक्य है इसलिये संशय दोष भी है । और संशय होनेसे अनिश्चयरूप अप्रत्तिपत्ति अर्थात् बोधका अभाव है, अप्रतिपत्ति होनेसे सत्त्व असत्त्वखरूप वस्तुका ही अभाव भान होता है । ये आठ दोष अनेकान्त मतमें हैं। ___ अत्र वदन्त्यभिज्ञाः । कथंचित्प्रतीयमाने स्वरूपाद्यपेक्षया विवक्षितयोस्सत्त्वासत्त्वयोः प्रतीयमानयोर्न विरोधः । अनुपलम्भसाध्यो हि विरोधः । न हि स्वरूपादिना वस्तुनस्सत्त्वे तदैव पररूपादिभिरसत्त्वस्यानुपलम्भोस्ति । स्वरूपादिभिस्सत्त्वस्येव पररूपादिभिरसत्त्वस्यापि प्रतीतिसिद्धत्वात् । इस विषयमें शास्त्रोंमें प्रवीण जन कहते हैं;-किसी अपेक्षासे प्रतीयमान एक वस्तुमें खरूप आदिकी अपेक्षासे विवक्षित तथा भासमान सत्त्व और असत्त्वका विरोध नहीं है । क्योंकि विरोधका साधक अभाव होता है, और खरूप आदिकी अपेक्षासे वस्तुका सत्त्व होने पर उसी समय पररूप आदिसे असत्त्वका अनुपलम्भ अर्थात् अप्राप्ति नहीं है । जैसे एक घट वस्तुमें घटत्त्वका उपलम्भ होनेसे और पटत्त्वका अनुपलम्भ इसवास्ते घटत्त्व पटत्वका विरोध है । परन्तु यहां तो जैसे खरूप आदिसे घटका सत्त्व है ऐसे ही पररूपादिसे असत्त्व भी अनुभव सिद्ध है। न खलु वस्तुनस्सर्वथा भाव एव स्वरूपं, स्वरूपेणेव पररूपेणापि भावप्रसंगात् । नाप्यभावएव, पररूपेणेव स्वरूपेणाप्यभावप्रसंगात् । किसी वस्तुका निश्चितरूपसे केवल भाव ही स्वरूप नहीं है क्योंकि ऐसा माननेसे जैसे स्वरूपें सपा पताका भान होता है ऐसे ही पररूपसे भी भावरूपका प्रसङ्ग हो जागा । और केवल अभाव भाप स्वप नहीं है. क्योंकि पररूपसे जैसे अभाव भासता है ऐसे ही स्वरूपसे भी अभावका प्रसङ्ग हो जायण । पररूपेणासत्त्वं नाप "रस्पातत्वमेव । न हि घटोरट्स्वरूपाभावे घटो नास्तीति वक्तुं शक्यम् । भूतले घटाभावे भूतले घटो नास्तीति वाक्यप्रवृत्तिवत् घण्टे पटवरूपाभावे पटोनास्तीत्येव वक्तुमुचितत्वात । इति चेन्न-विचारासहत्वात् । घटादिपुगपररूपासत्त्वं पदादिधर्मो घटधर्मो वा ? नाद्यः, व्याघातात् । न हि पदरूपासत्त्वं पटेस्ति । परस्य शून्यत्वापत्तेः । न च स्वधर्मः स्वस्मिन्नास्तीति वाच्यम् , तस्य स्वधर्मत्वविरोधात् । पटधर्मस्प घटाद्याधारकवायोगाच्च । अन्यथा धितानविवितानाकारस्यापि तदाधारकत्वप्रसंगात् । अन्य पक्षस्वीकारे तु विवादो विश्रान्तः, भावधर्मयोगाद्भावात्मकत्ववदभावधर्मयोगादभावात्मकत्वस्यापि स्वीकरणी १ जब एक स्थानगत वस्तुमें दो धर्मका अभाव प्राप्त होता है तब उस अभावसे उनका विरोध है जैसे स्थान में प्रकाश और अन्धकारका वा एक वस्तुमें घटत्व पटत्वका । For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 90 91 92 93 94 95 96 97 98