Book Title: Saptabhangi Tarangini
Author(s): Vimaldas, Pandit Thakurprasad Sharma
Publisher: Nirnaysagar Yantralaya Mumbai

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Page 96
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शङ्का-स्वरूपसे भावहीका ग्रहण होता है और पररूपसे अभावहीका ऐसे ही पररूपसे अभाव मात्र और स्वरूपसे भाव मात्र गृहीत होता है इस प्रकार एक वस्तुमें भाव अभावका कोई भी भेद नहीं तब वस्तु भाव अभाव उभयस्वरूप कैसे होसकता है ? यदि ऐसा कहो तो भाव तथा आभवकी अपेक्षाके निमित्तभूत जो पदार्थ हैं उनके भेदसे भावाभावस्वरूप वस्तु है ऐसा कहते हैं क्योंकि स्वद्रव्य आदि निमित्तकी अपेक्षा करके वस्तु भावरूप बोधको उत्पन्न करता है और परद्रव्य आदि निमित्त मानकर अभावरूप बोधको उत्पन्न करता है. इस प्रकार एक वस्तुमें एकत्व द्वित्व संख्याके सदृश भाव अभावका भेद है । क्योंकि एक द्रव्यमें द्रव्यान्तरकी अपेक्षा करके प्रकाशमान जो द्वित्व आदि संख्या है वह स्वकीय निजस्वरूपकी अपेक्षा करनेवाली एकत्व संख्यासे भिन्न नहीं प्रतीत होती ? और एकत्व द्वित्व एतत् उभय संख्या भी संख्यावान् पदार्थसे भिन्न नहीं है क्योंकि संख्यासे संख्यावान् द्रव्य सर्वथा भिन्न होनेसे द्रव्य असंख्येय हो जायगा । और संख्याका द्रव्यमें समवाय सम्बन्ध होनेसे द्रव्य संख्येय रहेगा ऐसा नहीं कह सकते क्योंकि कथंचित् तादात्म्यसे भिन्न होनेसे समवायका सिद्ध होना असंभव है । इसलिये संख्याके समान अपेक्षाके निमित्तभूत वस्तुके भेदसे सत्त्व और असत्त्वका भेदसे भी सिद्ध होगया । और एक पदार्थमें भिन्नरूपसे भासमान भाव अभाव अथवा सत्त्वका क्या विरोध है। ननु सत्त्वासत्त्वयोरेकवस्तुनि प्रतीतिमिथ्येति चेन्न; बाधकाभावात् । विरोधो बाधक इति चेन्न; परस्पराश्रयापत्तेः, सति हि विरोधे प्रतीतेस्तेन बाध्यमानत्वान्मिथ्यात्वसिद्धिः, ततश्च सत्त्वासत्त्वयोर्विरोधसिद्धिः । इति । शङ्का । एक व तुमें सत्त्व तथा असत्त्वकी प्रतीति ही मिथ्या है । ऐसी शङ्का नहीं कर सकते क्योंकि बिना किसी बाधाके सत्त्व असत्त्व दोनों भासते हैं । सत्त्व असत्त्वका विरोध ही बाधक है यह कथन भी युक्त नहीं है क्योंकि इन दोनोंकी सिद्धिमें अन्योन्याश्रय दोष है। प्रथम प्रतीतिका विरोध हो तो उससे प्रतीति बाधित होके उसका मिथ्यात्व सिद्ध हो । और प्रतीतिका मिथ्यात्व सिद्ध होनेसे सत्त्व असत्त्वका विरोध सिद्ध हो । यह अन्योन्याश्रय है। इसलिये सत्त्व असत्त्वको एक वस्तुमें भान होना मिथ्या नहीं है ॥ किश्च-विरोधस्तावत्रिधा व्यवतिष्ठते, वध्यघातकभावेन, सहानवस्थानात्मना वा, प्रतिबद्ध्यप्रतिबन्धकरूपेण वा । तत्राद्ये त्वहिनकुलाग्न्युदकादि विषयः । स चैकस्मिन् काले वर्तमानयोस्संयोगे सति भवति, संयोगस्यानेकाश्रयत्वात् द्वित्ववत् । नासंयुक्तमुदकमग्निं नाशयति, सर्वत्राग्न्यभावप्रसंगात् । ततस्सति संयोगे बलीयसोत्तरकालमितरद्धाध्यते । न हि तथाऽस्तित्वना १ बोध. For Private And Personal Use Only

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