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सिद्ध होगए । क्योंकि किसी अपेक्षासे तादात्म्य अर्थात् अभेद सम्बन्धसे सम्बन्धीहीको स्वधर्मरूपता होजाती है ।
नन्वेवं रीत्या घटस्य भावाभावात्मकत्वे सिद्धेपि घटोस्ति पटो नास्तीत्येव वक्तव्यम् । पटाभावप्रतिपादनपरवाक्यस्य तथा प्रवृत्तेः । यथा भूतले घटो नास्तीति घटाभावप्रतिपादनपरं वाक्यम् प्रवर्तते-न तु भूतलं नास्तीति, तथा प्रकृते पटाभावस्य घटात्मकत्वेपि पटो नास्तीत्येव प्रयोगो युक्तः । अभावबोधकवाक्यस्य प्रतियोगिप्रधानत्वात् । यथा घटप्रागभावस्य कपालात्मकत्वेपि कपालदशायां घटो भविष्यतीत्येव प्रागभावप्रतिपादकः प्रयोगो दृष्टः, न तु कपालो भविष्यतीति । यथा च घटध्वंसस्योत्तरकपालात्मकत्वेपि घटो नष्ट इत्येव प्रयोगः, तथा प्रकृतेपि । इति चेदुच्यते;-घटस्य भावाभावात्मकत्वे सिद्धेस्माकं विवादो विश्रान्तः, समीहितसिद्धेः । शब्दप्रयोगस्तु पूर्वपूर्वप्रयोगानुसारेण भविष्यति । न हि पदार्थसत्ताधीनइशब्दप्रयोगः । तथा हि-देवदत्तः पचतीति प्रयोगो वर्तते । तत्र देवदत्तपदार्थश्शरीरं वा ? आत्मा वा ? शरीरविशिष्टात्मा वा ? आये देवदत्तस्य शरीरं पचतीति प्रयोगापत्तिः। द्वितीये देवदत्तस्यात्मा पचतीति प्रयोगापत्तिः । शरीरविशिष्टात्मा पचतीति प्रयोगाभावात्तृतीयपक्षेपि नोपपत्तिः। तथा च प्रतिपादितप्रयोगाभावे पूर्वपूर्वप्रयोगाभाव एव शरणम् । तथा च पूर्वपूर्वप्रयोगानुगुण्येन प्रयोगप्रवृत्तेइशब्दप्रयोगस्य पर्यनुयोगानर्हत्वात् ।
शङ्का । इस पूर्वोक्त रीतिसे घटकी भाव अभाव उभयरूपता सिद्ध होने पर भी घट है पट नहीं है ऐसा ही प्रयोग करना चाहिये क्योंकि पटके अभाव प्रतिपादनमें तत्पर वाक्यकी प्रवृत्ति इस प्रकार हो सकती है। जैसे भूतलमें घट नहीं है ऐसा वाक्य घटका अभाव कथन करनेमें प्रवृत्त होता है । न कि भूतल नहीं है इस रीतिसे ऐसे ही पटाभावके घटरूप होने पर पट नहीं है ऐसा ही वाक्यप्रयोग होना चाहिये। क्योंकि अभावबोधक वाक्यमें अभावका प्रतियोगी ही प्रधान रहता है । और जैसे कपाल दशामें घटका प्रागभाव राषि कपालस्वरूप होने पर भी वहां कपाल दशामें घटके प्राग अभावप्रतिपादक वाक्यका प्रयोग घट होगा ऐसा ही होता है न कि कपाल होगा ऐसा प्रयोग! ऐसे ही घटका प्रध्वंसाभाव कपालस्वरूप होने पर भी घट नष्ट हुआ ऐसा ही प्रयोग दृष्ट है. न कि कपाल नष्ट हुआ ऐसा प्रयोग कहीं दृष्ट है। ऐसे ही प्रकृत स्थलमें भी पट आदि पटरूपाभावसे पट आदि नहीं है यही प्रयोग होना उचित है ? । यदि ऐसी आशङ्का करो तो इसका उत्तर कहते हैं । घटको भाव अभाव उभय स्वरूप सिद्ध होनेसे हमारे विवादकी समाप्ति है. क्योंकि उभयरूपता माननेहीसे हमारे अभीष्टकी सिद्धि है । और शब्दप्रयोग तो पूर्वपूर्व प्रयोगके अनुसार होगा । क्योंकि शब्दप्रयोग पदार्थकी सत्ताके वशीभूत नहीं है । जैसे "देवदत्तः पचति” देवदत्त पाक करता है ऐसा प्रयोग है । वहां पर देवदत्त पदका अर्थ देवदत्तका शरीर है, अथय् आत्मा है, वा शरीरसहित आत्मा है ? यदि प्रथम पक्ष है तब तो "देवदत्तस्य शरीरं फ्वति"
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