________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
७५
तथा च–सम्यगेकान्तसम्यगनेकान्तावाश्रित्य प्रमाणनयार्पणाभेदात्, स्यादेकान्तः, स्यादने - कान्तः, स्यादुभयः, स्यादवक्तव्यः स्यादेकान्तश्चावक्तव्यश्च स्यादनेकान्तश्चावक्तव्यश्च, स्यादेकान्तोनेकान्तश्चावक्तव्यश्चेति सप्तभंगी योज्या । तत्र नयार्पणादेकान्तो भवति, एकधर्मगोचरत्वान्नयस्य । प्रमाणादनेकान्तो भवति, अशेषधर्मनिश्चयात्मकत्वात्प्रमाणस्य । यद्यनेकान्तोऽनेकान्त एव नत्वेकान्त इति मतम् । तदा - एकान्ताभावे तत्समूहात्मकस्यानेकान्तस्याप्यभावप्रसंगः, शाखाद्यभावे वृक्षाद्यभाववत् । इत्येवं मूलभंगद्वये सिद्धे उत्तरे च भंगा एवमेव योजयितव्याः ॥
तदुक्तम् ।
यह विषय अन्यत्र भी कहा गया है;
1
इसलिये सम्यक् एकान्त और सम्यक् अनेकान्तका आश्रय लेकर प्रमाण तथा नयके भेदक योजनासे किसी अपेक्षासे एकान्त, किसी अपेक्षासे अनेकांत, किसी अपेक्षा उभय, किसी अपेक्षासे अवक्तव्य है, कथंचित् एकांत अवक्तव्य, कथंचित् अनेकांत अवक्तव्य, और कथंचित् एकांत अनेकांत अवक्तव्य है इस रीतिसे सप्तभङ्गीकी योजना करनी चाहिये । उसमें नयकी योजनासे एकांत पक्ष सिद्ध होता है, क्योंकि नय एक ही धर्मको विषय करता है । और प्रमाणको योजनासे अनेकांत सिद्ध होता है, क्योंकि प्रमाण संपूर्ण धर्मोको विषय करता है, अर्थात् प्रमाणसे वस्तुके संपूर्ण धर्मोका निश्चय होता है । और यदि अनेकांत अनेकांत ही रहै किसी अपेक्षासे भी एकांत नहीं है ऐसा मत है तब तो एकांत अभावसे उसके समूहभूत अनेकांतका भी अभाव ही हो जायगा जैसे शाखादिकके अभाव से शाखा समूहरूप वृक्ष आदिका भी अभाव होता है ऐसे ही एकांत के अभाव से एकांत समूहरूप अनेकांतका भी अभाव हो जायगा । इस रीति से मूलभूते दो भंगकी सिद्धि होनेसे उत्तर भङ्गोंकी योजना करनी चाहिये ।
इयं च सप्तभंगी नित्यत्वानित्यत्वैकत्वानेकत्वादिधर्मेष्वपि निरूपयितव्या । यथा - स्यान्नित्यो घटः, स्यादनित्यो घट इति मूलभंगद्वयं, घटस्य द्रव्यरूपेण नित्यत्वात्पर्यायरूपेणानित्यत्वात् । इस सप्तभङ्गीका निरूपण नित्यत्व अनित्यत्व एकत्व तथा अनेकत्व आदि धर्मोंसे करना चाहिये । जैसे कथंचित् घट नित्य है । और कथंचित् घट अनित्य है, यह दो मूल भङ्ग हैं क्योंकि घट द्रव्यरूपसे नित्य है और पर्यायरूपसे अनित्य है ।
I
66
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
समुदेति विलयमृच्छति भावो नियमेन पर्ययनयेन ।
नोदेति नो विनश्यति द्रव्यनयालिङ्गितो नित्यम् ॥ " इति ।
“पर्यायार्थिकनयकी अपेक्षासे नियमसे पदार्थ उत्पन्न होता है और नष्ट भी होता है. परन्तु द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षासे पदार्थ न उत्पन्न ही होता है. और न नष्ट ही होता है"
१ एकान्त के समूहरूप, जैसे शाखा समूहरूप वृक्ष है, ऐसे ही एकान्त समूह ही अनेकान्त है. २ अस्ति, नास्ति, वा एकान्त, अनेकान्त ३ अस्ति नास्ति इस तृतीयभंगसे लेके 'स्यादस्ति नास्ति चावक्तव्यश्च' इस सप्तम भङ्गपर्यन्त पांच उत्तर भन्न हैं । मूल भङ्ग अस्ति नास्ति ये दो ही हैं.
For Private And Personal Use Only