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वाक्य, यह इसका लक्षण है अर्थात् जिस ज्ञानमें घट आदि कोई एक पदार्थ तो विशेष्य हो, और सत्त्व असत्त्व सहित अवक्तव्यत्व विशेषण हो ऐसा जो ज्ञान उस ज्ञानका उत्पन्न करानेवाला वाक्य यह इस सप्तम भंगका लक्षण है इस कारणसे अलग २ क्रमसे योजित द्रव्य पर्यायकी अपेक्षासे सत्त्व असत्त्व सहित मिलित तथा साथ योजित द्रव्यपर्यायकी अपेक्षासे अवक्तव्यत्वका आश्रय घट यह इस भंगका अर्थ है । इस प्रकार संक्षेपसे सप्त भंगोंका निरूपण समाप्त हुआ ।
अत्र-द्रव्यमेव तत्त्वं, अतस्स्यादस्तीति भंग एक एवेति सांख्यमतमयुक्तम् ;-पर्यायस्यापि प्रतीतिसिद्धत्वात् । तथा-पर्याय एव तत्त्वम् , अतस्स्यान्नास्तीति भंग एवेति सौगतमतमपि युक्तिदुर्गतम् ; द्रव्यस्यापि प्रतीतिसिद्धत्वात् । एवमवक्तव्यमेव वस्तुतत्वमित्यवक्तव्यत्वैकान्तोपि स्ववचनपराहतः, सदा मौनत्रतिकोहमितिवत् । एवमेवान्येषामेकान्तानां प्रतीतिपराहतत्वादनेकान्तवाद एवावतिष्ठते ।। __ अब इस विषयमें द्रव्य ही तत्त्व है और पर्याय नहीं है इसलिये "स्यादस्ति" पदार्थ है यह एक ही भंग सत्य है, ऐसा सांख्य मत है वह अयुक्त है क्योंकि घट कुशूल आदि पर्याय भी अनुभव सिद्ध हैं, तथा पर्याय ही तत्त्व है अर्थात् हरएक पदार्थ क्षण २ में बदलता रहता है, इसलिये क्षणिक पर्याय ही तत्त्व है कोई मुख्य द्रव्य नित्य नहीं है अत एव "स्यान्नास्ति" नित्य कोई द्रव्य नहीं है, यह एक ही भंग युक्तिसे युक्त है, यह बौद्धका मत भी युक्ति शून्य है क्योंकि घट आदि पर्यायोंमें मृत्तिकाका रूप द्रव्य कटक कुण्डल आदिमें सुवर्णरूप अनुगतरूप द्रव्य भी अनुभव सिद्ध है। इसी प्रकार जो यह कहते हैं कि सर्वथा अवक्तव्यरूप ही वस्तु स्वरूप है. उनको निज वचनता ही विरोध है क्योंकि अवक्तव्य इस शब्दसे वे वस्तुको कहते हैं तो सर्वथा अवक्तव्यता कहां रही। जैसे कोई कहे कि मैं सदा मौनव्रत धारण करता हूं; यदि सदा मौन है तो सदा मैं मौन हूं. यह शब्द भी कैसे बोल सकता है । इसी रीतिसे अन्य भी सर्वथा एकान्तवादियोंका कथन अनुभवविरुद्ध होनेसे अनेकान्त वाद ही युक्ति तथा अनुभवरूप कसौटी पर ठहरता है, अतः वही निर्विवादरूपसे स्थित है।
ननु च-अनेकान्तेपि विधिप्रतिषेधरूपा सप्तभंगी प्रवर्तते वा न वा ? यदि प्रवर्तते-तदाऽनेकान्तस्य निषेधकल्पनायामेकान्त एव प्राप्त इति तत्पक्षोक्तदोषानुषंगः । अनवस्था च । तादृशैकान्तस्याप्यपरानेकान्तकल्पनया विधिप्रतिषेधयोर्वक्तव्यत्वात् । यदि सा न प्रवर्तते तदा सर्व वस्तुजातं सप्तभंगी संवलितमिति सिद्धान्तव्याघातः । इति चेन्न, प्रमाणनयार्पणाभेदात्तत्रापि तदुपपत्तेः । तथा हि-एकान्तो द्विविधः-सम्यगेकान्तो मिथ्यकान्त इति । अनेकान्तोपि द्विविधः, सम्यगनेकान्तो मिथ्यानेकान्त इति । तत्र सम्यगेकान्तस्तावत्प्रमाणविषयीभूतानेक
१ बौद्धका यह मत है कि वह कोई पदार्थ नित्य नहीं मानता किन्तु सब क्षणिक बुद्धिगत घट आदि पर्याय भासते हैं । और पदार्थ हैं वह क्षणिक अनित्य हैं जैसे घट क्योंकि सर्व सत्त्व है जैसे घट नाशके प्रति किसीकी अपेक्षा नहीं रखता अतः क्षणिक है.
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