Book Title: Saptabhangi Tarangini
Author(s): Vimaldas, Pandit Thakurprasad Sharma
Publisher: Nirnaysagar Yantralaya Mumbai

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Page 80
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इस उभय धर्म सहित रूपसे अवाच्य है, यदि सत्त्व असत्त्व धर्म सहित पदार्थको सत्त्व आदि एक धर्मके द्वारा भी अवाच्य मानो, तो वाच्यत्वका अभावरूप धर्म है। उस अभावरूप धर्मके द्वारा वस्तुको कहनेवाले 'अवाच्य' इस शब्दसे वह वस्तु वाच्य न होगा, बस यही अभिप्राय आचार्यके वचनका है, इस सत्यार्थ व्याख्यानको त्याग कर सत्त्व असत्त्व इस उभय धर्मसे अवाच्य जो पदार्थ है वही सत्त्व असत्त्व इस उभय धर्मसहित वस्तुको कहनेवाले अवाच्य शब्दसे भी वाच्य होता है, यदि ऐसा व्याख्यान करोगे तो जिस रूपसे पदार्थ अवाच्य है उसी रूपसे वह वाच्य भी होगया, यह वार्ता सिद्ध होगई, तब तो तुम जिस रूपसे वस्तुका सत्त्व है उसी रूपसे उसी वस्तुका असत्त्व भी स्वीकार करो । यह बात प्राप्त हुई । और इस प्रकार माननेसे " विरोधान्नोभयैकान्यं स्याद्वादन्यायवेदिनाम् ।” विरोध होनेसे सत्त्व असत्त्व इन उभय धर्ममेंसे किसी एक धर्मरूपसे अवाच्यत्व स्याद्वाद न्यायके मर्मवेत्ता जन नहीं स्वीकार करते । इति तदीयवचनमेव विरुद्ध्यते । इस स्वामी समन्तभद्राचार्यजीके वचनका ही विरोध तुमको प्राप्त होगा। सिद्धान्तविदस्तु-अवक्तव्य एव घट इत्युक्ते सर्वथा घटस्यावक्तव्यत्वं स्यात् , तथा चास्तित्वादिधर्ममुखेनापि घटस्य प्रथमादिभंगैरभिधानं न स्यात्, अतः स्यादिति निपातप्रयोगः । तथा च सत्त्वादिरूपेण वक्तव्य एव घटो युगपत्प्रधानभूतसत्त्वासत्त्वोभयरूपेणावक्तव्य इति चतुर्थभंगार्थनिष्कर्ष इति प्राहुः ।। सिद्धान्तवेत्ता जन तो-"अवक्तव्यः एव घट" घट अवक्तव्य है। ऐसा कहनेसे घटको अवक्तव्यता सर्वथा प्राप्त होगी, तो इस रीतिसे अस्तित्व आदि धर्मके द्वारा प्रथम आदि भङ्गसे भी घटका कथन नहीं होसकेगा, इसलिये अवक्तव्य शब्दके पूर्व स्यात् इस निपातका प्रयोग किया है । इस प्रकार इस निपातके लगानेसे सत्त्व आदिरूपसे तो घट वक्तव्य है किन्तु एक कालमें ही प्रधानभूत सत्त्व असत्त्व इन उभय रूपसे अवक्तव्य है यह इस "स्यादवक्तव्य एव घटः" चतुथे भङ्गके अर्थका सारांश है ऐसा कहते हैं। व्यस्तसमस्तद्रव्यपर्यायावाश्रित्य चरमभंगत्रयमुपपादनीयम् । तथा हि-व्यस्तं द्रव्यं समस्तौ सहार्पितौ द्रव्यपर्यायावाश्रित्य स्यादस्ति चावक्तव्य एव घट इति पंचमभंगः । घटादिरूपैकर्मिविशेष्यकसत्त्वविशिष्टावक्तव्यत्वप्रकारकबोधजनकवाक्यत्वं तल्लक्षणम् । तत्र द्रव्यार्पणादस्तित्वस्य युगपद्व्यपर्यायार्पणादवक्तव्यत्वस्य च विवक्षितत्वात् । १ स्यादस्ति घटः' इस पहिले भंगसे भी घट नहीं कहा जायगा, क्योंकि यदि सर्वथा अवाच्य है तो उसका कथन किसी धर्मसे नहीं हो सकता. २ स्यात् यह निपात अनेकान्त अर्थका वाचक या द्योतक है अर्थात किसी अपेक्षासे घट अवक्तव्य है न कि सर्वथा. For Private And Personal Use Only

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