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न कि एक कालमें अनेक अर्थोकी कथनकी शक्ति । और जैसे शब्दमें यह शक्ति है कि वह एक कालमें एक ही अर्थको कहे। ऐसे ही अर्थमें भी यह शक्ति है कि वह एक ही शब्दका वाच्य हो अर्थात् एक ही शब्दसे कहाजाय, शब्द तथा अर्थकी शक्तिसे यही निश्चय होता है । और 'पुष्पवन्तौ' इत्यादि शब्दोंमें जो सूर्य चन्द्र आदि दो अर्थके बोधन करनेकी शक्ति है वह भी क्रमसे अथवा शब्दकी आवृत्तिसे है, इसलिये कोई दोष नहीं है।
ननु-सेनावनयुद्धपंक्तिमालापानकग्रामनगरादिशब्दानामनेकार्थप्रतिपादकत्वं दृष्टमिति चेन्न; -करितुरगरथपदातिसमूहस्यैवैकस्य सेनाशब्देनाभिधानात् , वृक्षसमूहस्य वनशब्देन, पुष्पसमूहस्य मालाशब्देन, गुडादिद्रव्यसमूहस्य पानकशब्देन, प्रासादादिसमूहस्य नगरशब्देन, चाभिधानान्नैकशब्देनानेकार्थप्रतिपादनं दृश्यते । __ प्रश्नः-सेना, वन, युद्ध, पंक्ति, माला, तथा पानक, इत्यादि शब्दोंकी अनेक अर्थ कहनेकी शक्ति दृष्ट है क्योंकि सेनासे अश्व हस्ति आदि, वनसे अनेक प्रकारके वृक्ष आदि, युद्धसे अनेक प्रकार शस्त्र अस्त्रका चलना, प्राणका वियोग जय पराजय आदि अनेक व्यापाररूप, पंक्तिसे अनेक पदार्थोंकी श्रेणि, मालासे अनेक प्रकारके मणि आदि, और पानकसे अनेक प्रकारके विलक्षण रसके खाद तथा नाम, नगर आदिसे अनेक प्रकारके मनुष्य आदि अर्थोंका बोध होता है, इसलिये यह शब्द एक कालमें ही अनेक अर्थोंको कहते हैं तो एक शब्द एक ही अर्थको कहता है यह सिद्धान्त नहीं बन सकता है । सो ऐसी शंका भी नहीं कर सकते; क्योंकि हस्ती, अश्व, रथ, तथा पैदल मनुष्य आदिका समूहरूप, एक ही अर्थ सेना शब्दसे कहा जाता है, ऐसे ही वन शब्दसे अनेक प्रकारके वृक्षोंका समूह, माला शब्दसे पुष्प अथवा मणि आदिका समूह, युद्ध शब्दसे शस्त्र अस्त्रादिकका व्यापार, पंक्ति शब्दसे श्रेणीबद्ध पदार्थ, पानक शब्दसे जड़ आदि द्रव्योंसे विलक्षण रसका समूह, तथा नगर ग्राम आदि शब्दसे गृह अट्टालिका आदिका समूहरूप, एक ही अर्थ कहा जाता है, इसलिये सेना आदि शब्दोंको भी अनेक अर्थोकी प्रतिपादनशक्ति नहीं देख पड़ती।
नन्वेवं-वृक्षावितिपदं वृक्षद्वयबोधकं वृक्षा इति च बहुवृक्षबोधकं कथमुपपद्यत इति चेत् ? पाणिन्यादीनामेकशेषारम्भाज्जैनेन्द्राणामभिधानस्य स्वाभाविकत्वादिति ब्रूमहे । तत्रैकशेषपक्षेद्वाभ्यामेव वृक्षशब्दाभ्यां वृक्षद्वयस्य बहुभिरेव वृक्षशब्दैर्बहूनां वृक्षाणामभिधानान्नैकशब्दस्य सकृदनेकार्थबोधकत्वम् । लुप्तावशिष्टशब्दयोः साम्याबृक्षरूपार्थस्य समानत्वाच्चैकत्वोपचारात्तत्रैकशब्दप्रयोगोपपत्तिः । अभिधानस्य स्वाभाविकत्वपक्षे च वृक्षशब्दो द्विबहुवचनान्तः स्वभावत एव द्वित्वबहुत्वविशिष्टं वृक्षरूपार्थमभिदधाति । वृक्षावित्यत्र हि वृक्षत्वावच्छिन्नो वृक्ष. शब्दार्थः, द्वित्वं च द्विवचनार्थः, प्रत्ययार्थस्य प्रकृत्यर्थेऽन्वयात् द्वित्वविशिष्टौ वृक्षाविति बोधः । वृक्षा इत्यत्र च बहुवचनार्थो बहुत्वमिति बहुत्वविशिष्टा वृक्षा इति बोधः ।
१ अर्थ, जैसे शब्द किसी विशेष अर्थके कहनेमें नियत है ऐसे ही अर्थ भी खास अपने वाचक शब्दसे ही कहाजाता है. २ शब्दोंमें अर्थ कहनेकी सामर्थ्य.
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